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<p> साधु के योग्य शुद्ध आहार के हेतु उद्गम, उत्पादन, अशन, संयोजन, प्रमाण, '''अंगार''', धूम कारण - इन आठ दोषों कर रहित जो भोजन लेना वह आठ प्रकार की पिंडशुद्धि कही है | देखें [[ आहार#II.4.4 | आहार - II.4.4]]। | <p class="HindiText"> साधु के योग्य शुद्ध आहार के हेतु उद्गम, उत्पादन, अशन, संयोजन, प्रमाण, '''अंगार''', धूम कारण - इन आठ दोषों कर रहित जो भोजन लेना वह आठ प्रकार की पिंडशुद्धि कही है | देखें [[ आहार#II.4.4 | आहार - II.4.4]]। | ||
2. वसति संबंधी एक दोष - देखें [[ वसतिका ]]।</p> | <p class="HindiText">2. वसति संबंधी एक दोष - देखें [[ वसतिका ]]।</p> | ||
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<p id="1">1) चंडवेग विद्याधर से पराजित एक विद्याधर । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 25.63 </span></p> | <p class="HindiText" id="1">1) चंडवेग विद्याधर से पराजित एक विद्याधर । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 25.63 </span></p> | ||
<p id="2">(2) आहार-दाता के चार दोषों में दूसरा दोष । | <p class="HindiText" id="2">(2) आहार-दाता के चार दोषों में दूसरा दोष ।<span class="GRef"> हरिवंशपुराण 9.188</span> देखें [[ आहारदान ]]</p> | ||
Revision as of 14:45, 7 December 2022
== सिद्धांतकोष से ==
1. आहार संबंधी एक दोष -
साधु के योग्य शुद्ध आहार के हेतु उद्गम, उत्पादन, अशन, संयोजन, प्रमाण, अंगार, धूम कारण - इन आठ दोषों कर रहित जो भोजन लेना वह आठ प्रकार की पिंडशुद्धि कही है | देखें आहार - II.4.4।
2. वसति संबंधी एक दोष - देखें वसतिका ।
पुराणकोष से
1) चंडवेग विद्याधर से पराजित एक विद्याधर । हरिवंशपुराण 25.63
(2) आहार-दाता के चार दोषों में दूसरा दोष । हरिवंशपुराण 9.188 देखें आहारदान