आहार पर्याप्ति: Difference between revisions
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<span class="GRef"> धवला 1/1,1,34/254/6 </span><span class="SanskritText">शरीरनामकर्मोदयात् पुद्गलविपाकिन आहारवर्गणागतपुद्गलस्कंधः समवेतानंतपरमाणुनिष्पादिता आत्मावष्टब्धक्षेत्रस्थाः कर्मस्कंधसंबंधतो मूर्तीभूतमात्मानं समवेतत्वेन समाश्रयंति। तेषामुपगतानां खलरसपर्यायैः परिणमनशक्तेर्निमित्तानामाप्तिराहारपर्याप्तिः। ...तं खलभागं तिलखलोपममस्थ्यादिस्थिरावय-वैस्तिलतैलसमानं रसभागं रसरुधिरवसाशुक्रादिद्रवावयवैरौदारि-कादिशरीरत्रयपरिणामशक्त्युपेतानां स्कंधानामवाप्तिः शरीर-पर्याप्तिः। ...योग्यदेशस्थितरूपादिविशिष्टार्थग्रहणशक्त्युत्पत्ते-र्निमित्तपुद्गलप्रचायावाप्तिरिंद्रियपर्याप्तिः। ...उच्छवासनिस्सरण-शक्तेर्निमित्तपुद्गलप्रचायावाप्तिरानपानपर्याप्तिः। ...भाषावर्गणायाः स्कंधाच्चतुर्विधभाषाकारेण परिणमनशक्तेर्निमित्तनौकर्मपुद्गलप्रचायावाप्तिर्भाषापर्याप्तिः। ...मनोवर्गणा स्कंधनिष्पंनपुद्गलप्रचयः अनुभूतार्थशक्तिनिमित्तः मनःपर्याप्तिः द्रव्यमनोऽवष्टंभेनानुभूतार्थस्मरणशक्तेरुत्पत्तिर्मनः पर्याप्तिर्वा। </span>= <span class="HindiText">शरीर नामकर्म के उदय से जो परस्पर अनंत परमाणुओं के संबंध से उत्पन्न हुए हैं, और जो आत्मा से व्याप्त आकाश क्षेत्र में स्थित हैं, ऐसे पुद्गल विपाकी आहारकवर्गणा संबंधी पुद्गल स्कंध, कर्म स्कंध के संबंध से कथंचित् मूर्तपने को प्राप्त हुए हैं, आत्मा के साथ समवाय रूप से संबंध को प्राप्त होते हैं, उन खल भाग और रस भाग के भेद से परिणमन करने की शक्ति से बने हुए आगत पुद्गल स्कंधों की प्राप्ति को <b>आहार पर्याप्ति</b> कहते हैं। ...तिल की खली के समान उस खल भाग को हड्डी आदि कठिन अवयवरूप से और तिल तेल के समान रस भाग को रस, रुधिर, वसा, वीर्य आदि द्रव अवयवरूप से परिणमन करने वाले औदारिकादि तीन शरीरों की शक्ति से युक्त पुद्गल स्कंधों की प्राप्ति को शरीर पर्याप्ति कहते हैं। ...योग्य देश में स्थित रूपादि से युक्त पदार्थों के ग्रहण करने रूप शक्ति की उत्पत्ति के निमित्तभूत पुद्गल प्रचय की प्राप्ति को इंद्रियपर्याप्ति कहते हैं। ...उच्छ्वास और निःश्वासरूप शक्ति की पूर्णता के निमित्तभूत पुद्गल प्रचय की प्राप्ति को आन-पान पर्याप्ति कहते हैं। ...भाषावर्गणा के स्कंधों के निमित्त से चार प्रकार की भाषारूप से परिणमन करने की शक्ति के निमित्तभूत नो-कर्मपुद्गलप्रचय की प्राप्ति को भाषापर्याप्ति कहते हैं। ....अनुभूत अर्थ के स्मरणरूप शक्ति के निमित्तभूत मनोवर्गणा के स्कंधों से निष्पन्न पुद्गल प्रचय को मनःपर्याप्ति कहते हैं। अथवा द्रव्यमन के आलंबन से अनुभूत अर्थ के स्मरणरूप शक्ति की उत्पत्ति को मनः-पर्याप्ति कहते हैं। </span><br /> | |||
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Revision as of 17:30, 11 December 2022
धवला 1/1,1,34/254/6 शरीरनामकर्मोदयात् पुद्गलविपाकिन आहारवर्गणागतपुद्गलस्कंधः समवेतानंतपरमाणुनिष्पादिता आत्मावष्टब्धक्षेत्रस्थाः कर्मस्कंधसंबंधतो मूर्तीभूतमात्मानं समवेतत्वेन समाश्रयंति। तेषामुपगतानां खलरसपर्यायैः परिणमनशक्तेर्निमित्तानामाप्तिराहारपर्याप्तिः। ...तं खलभागं तिलखलोपममस्थ्यादिस्थिरावय-वैस्तिलतैलसमानं रसभागं रसरुधिरवसाशुक्रादिद्रवावयवैरौदारि-कादिशरीरत्रयपरिणामशक्त्युपेतानां स्कंधानामवाप्तिः शरीर-पर्याप्तिः। ...योग्यदेशस्थितरूपादिविशिष्टार्थग्रहणशक्त्युत्पत्ते-र्निमित्तपुद्गलप्रचायावाप्तिरिंद्रियपर्याप्तिः। ...उच्छवासनिस्सरण-शक्तेर्निमित्तपुद्गलप्रचायावाप्तिरानपानपर्याप्तिः। ...भाषावर्गणायाः स्कंधाच्चतुर्विधभाषाकारेण परिणमनशक्तेर्निमित्तनौकर्मपुद्गलप्रचायावाप्तिर्भाषापर्याप्तिः। ...मनोवर्गणा स्कंधनिष्पंनपुद्गलप्रचयः अनुभूतार्थशक्तिनिमित्तः मनःपर्याप्तिः द्रव्यमनोऽवष्टंभेनानुभूतार्थस्मरणशक्तेरुत्पत्तिर्मनः पर्याप्तिर्वा। = शरीर नामकर्म के उदय से जो परस्पर अनंत परमाणुओं के संबंध से उत्पन्न हुए हैं, और जो आत्मा से व्याप्त आकाश क्षेत्र में स्थित हैं, ऐसे पुद्गल विपाकी आहारकवर्गणा संबंधी पुद्गल स्कंध, कर्म स्कंध के संबंध से कथंचित् मूर्तपने को प्राप्त हुए हैं, आत्मा के साथ समवाय रूप से संबंध को प्राप्त होते हैं, उन खल भाग और रस भाग के भेद से परिणमन करने की शक्ति से बने हुए आगत पुद्गल स्कंधों की प्राप्ति को आहार पर्याप्ति कहते हैं। ...तिल की खली के समान उस खल भाग को हड्डी आदि कठिन अवयवरूप से और तिल तेल के समान रस भाग को रस, रुधिर, वसा, वीर्य आदि द्रव अवयवरूप से परिणमन करने वाले औदारिकादि तीन शरीरों की शक्ति से युक्त पुद्गल स्कंधों की प्राप्ति को शरीर पर्याप्ति कहते हैं। ...योग्य देश में स्थित रूपादि से युक्त पदार्थों के ग्रहण करने रूप शक्ति की उत्पत्ति के निमित्तभूत पुद्गल प्रचय की प्राप्ति को इंद्रियपर्याप्ति कहते हैं। ...उच्छ्वास और निःश्वासरूप शक्ति की पूर्णता के निमित्तभूत पुद्गल प्रचय की प्राप्ति को आन-पान पर्याप्ति कहते हैं। ...भाषावर्गणा के स्कंधों के निमित्त से चार प्रकार की भाषारूप से परिणमन करने की शक्ति के निमित्तभूत नो-कर्मपुद्गलप्रचय की प्राप्ति को भाषापर्याप्ति कहते हैं। ....अनुभूत अर्थ के स्मरणरूप शक्ति के निमित्तभूत मनोवर्गणा के स्कंधों से निष्पन्न पुद्गल प्रचय को मनःपर्याप्ति कहते हैं। अथवा द्रव्यमन के आलंबन से अनुभूत अर्थ के स्मरणरूप शक्ति की उत्पत्ति को मनः-पर्याप्ति कहते हैं।
और देखें पर्याप्ति ।