रावण: Difference between revisions
From जैनकोष
mNo edit summary |
m (→सिद्धांतकोष से) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
| | ||
== सिद्धांतकोष से == | == सिद्धांतकोष से == | ||
<span class="GRef"> परमात्मप्रकाश/ </span> सर्ग/श्लोक नं.<div class="HindiText"> <p id="1"> रत्नश्रवा का पुत्र था (7/209) अपरनाम दशानन था। लंका का राजा था (9/49) सीता का हरण करने पर राम से युद्ध किया। लक्ष्मण द्वारा मारा गया (76/34) यह 8वाँ प्रतिनारायण था|</p> | <span class="GRef"> परमात्मप्रकाश/ </span> सर्ग/श्लोक नं.<div class="HindiText"> <p id="1"> रत्नश्रवा का पुत्र था (7/209) अपरनाम दशानन था। लंका का राजा था (9/49) सीता का हरण करने पर राम से युद्ध किया। लक्ष्मण द्वारा मारा गया (76/34) यह 8वाँ प्रतिनारायण था| - (अधिक जानकारी के लिए देखें [[ शलाका पुरुष#5 | शलाका पुरुष - 5]])।</p> | ||
</div> | </div> | ||
<noinclude> | <noinclude> | ||
Line 12: | Line 11: | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: र]] | [[Category: र]] | ||
== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == |
Revision as of 18:14, 11 December 2022
सिद्धांतकोष से
परमात्मप्रकाश/ सर्ग/श्लोक नं.
रत्नश्रवा का पुत्र था (7/209) अपरनाम दशानन था। लंका का राजा था (9/49) सीता का हरण करने पर राम से युद्ध किया। लक्ष्मण द्वारा मारा गया (76/34) यह 8वाँ प्रतिनारायण था| - (अधिक जानकारी के लिए देखें शलाका पुरुष - 5)।
पुराणकोष से
(1) भार्गववंशी राजा शरासन का पुत्र । यह द्रोणाचार्य का दादा और विद्रावण का पिता था । हरिवंशपुराण 45.46-47
(2) अवसर्पिणी काल के दु:षमा-सुषमा नामक चौथे काल में उत्पन्न शलाकापुरुष एव आठवाँ प्रतिनारायण । यह राजा रत्नश्रवा और केकसी रानी का पुत्र था । लोक में दशानन नाम से विख्यात हुआ था । इसकी अठारह हजार रानियां थीं । इनमें मंदोदरी प्रमुख थी । वेदवती की पर्याय मे सीता के जीव के साथ यह संबंध करना चाहता था । इसी संस्कार से इसने सीता का हरण किया था । वेदवती की प्राप्ति के लिए इसने वेदवती के पिता श्रीभूति ब्राह्मण की हत्या की थी । फलत: श्रीभूति के जीव लक्ष्मण ने उसे मारा । पूर्वभव में सीता के जीव को रावण के जीव के द्वारा भाई के वियोग का दुःख उठाना पड़ा था, यही कारण है कि सीता भी इसके धात में निमित्त हुई । पद्मपुराण 7.165, 222, 46.29, 106.202-208, 123.121-130, वीरवर्द्धमान चरित्र 18.101, 114-115 देखें दशानन