अनंतर: Difference between revisions
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<p>- देखें [[ बंध#1 | बंध - 1]]।</p> | <span class="GRef"> धवला 12/4,2,12,1/370/7 </span><span class="PrakritText">कम्मइयवग्गणाए ट्ठिदपोग्गलक्खंधा मिच्छत्तादिपच्चएहि कम्मभावेण परिणदपढमसमए अणंतरबंधा । कधमेदेसिमणंतरबंधत्तं । कम्मइयवग्गणपज्जयपरिच्चत्ताणंतरसमए चेव कम्मपच्चएण परिणयत्तादो । ... बंधविदियसमयप्पहुडि कम्मपोग्गलक्खंधाणं जीवपदेसाणं च जो बंधो सो परंपरबंधो णाम । ... पढमसमए बंधो जादो, विदियसमये वि तेसिं पोग्गलाणं बंधो चेव, तिदियसमये वि बंधो, चेव, एवं बंधस्स णिरंतरभावो बंधपरंपरा णाम । ताए बंधापरंपराबंधा त्ति दट्ठव्वा ।</span><br /> | ||
<span class="GRef"> धवला 12/4,2,12,4/372/2 </span><span class="PrakritText">णाणावरणीयकम्मक्खंधा अणंताणंता णिरंतरमण्मोण्णेहि संबद्धा होदूण जे दिट्ठा ते अणंतरबंधा णाम । ... अणंताणंता कम्मपोग्गलक्खंधा अण्णोणसंबद्धा होदूण सेसकम्मक्खंधेहिं असंबद्धा जीवदुवारेण इदरेहि संबंधमुवगया परंपरबंधा णाम ।</span> = | |||
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<li class="HindiText"> कार्मणवर्गणास्वरूप से स्थित पुद्गल स्कंधों का मिथ्यात्वादिक प्रत्ययकों के द्वारा कर्मस्वरूप से परिणत होने के प्रथम समय में जो बंध होता है उसे अंतरबंध कहते हैं । ... चूँकि वे कार्मण-वर्गणारूप पर्याय को छोड़ने के अनंतर समय में ही कर्मरूप पर्याय से परिणत हुए हैं, अतः उनकी <b>अनंतर बंध</b> संज्ञा है । ... बंध होने के द्वितीय समय से लेकर कर्म रूप पुद्गल स्कंधों और जीवप्रदेशों का जो बंध होता है उसे परंपरा बंध कहते हैं । ... प्रथम समय में बंध हुआ, द्वितीय समय में भी उन पुद्गलों का बंध ही है, तृतीय समय में भी बंध ही है, इस प्रकार से बंध की निरंतरता का नाम बंध-परंपरा है । उस परंपरा से होने वाले बंधों को परंपरा-बंध समझना चाहिए । </li> | |||
<li class="HindiText"> जो अनंतानंत ज्ञानावरणीय कर्मरूप स्कंध निरंतर परस्पर में संबद्ध होकर स्थित हैं वे <b>अनंतर बंध</b> हैं ।... जो अनंतानंत कर्म-पुद्गल स्कंध परस्पर में संबद्ध होकर शेषकर्म संबद्धों से असंबद्ध होते हुए जीव के द्वारा इतर स्कंधों से संबंध को प्राप्त होते हैं, वे परंपरा बंध कहे जाते हैं ।<br /> | |||
<p class="HindiText">- और देखें [[ बंध#1 | बंध - 1]]।</p> | |||
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Latest revision as of 17:26, 12 December 2022
धवला 12/4,2,12,1/370/7 कम्मइयवग्गणाए ट्ठिदपोग्गलक्खंधा मिच्छत्तादिपच्चएहि कम्मभावेण परिणदपढमसमए अणंतरबंधा । कधमेदेसिमणंतरबंधत्तं । कम्मइयवग्गणपज्जयपरिच्चत्ताणंतरसमए चेव कम्मपच्चएण परिणयत्तादो । ... बंधविदियसमयप्पहुडि कम्मपोग्गलक्खंधाणं जीवपदेसाणं च जो बंधो सो परंपरबंधो णाम । ... पढमसमए बंधो जादो, विदियसमये वि तेसिं पोग्गलाणं बंधो चेव, तिदियसमये वि बंधो, चेव, एवं बंधस्स णिरंतरभावो बंधपरंपरा णाम । ताए बंधापरंपराबंधा त्ति दट्ठव्वा ।
धवला 12/4,2,12,4/372/2 णाणावरणीयकम्मक्खंधा अणंताणंता णिरंतरमण्मोण्णेहि संबद्धा होदूण जे दिट्ठा ते अणंतरबंधा णाम । ... अणंताणंता कम्मपोग्गलक्खंधा अण्णोणसंबद्धा होदूण सेसकम्मक्खंधेहिं असंबद्धा जीवदुवारेण इदरेहि संबंधमुवगया परंपरबंधा णाम । =
- कार्मणवर्गणास्वरूप से स्थित पुद्गल स्कंधों का मिथ्यात्वादिक प्रत्ययकों के द्वारा कर्मस्वरूप से परिणत होने के प्रथम समय में जो बंध होता है उसे अंतरबंध कहते हैं । ... चूँकि वे कार्मण-वर्गणारूप पर्याय को छोड़ने के अनंतर समय में ही कर्मरूप पर्याय से परिणत हुए हैं, अतः उनकी अनंतर बंध संज्ञा है । ... बंध होने के द्वितीय समय से लेकर कर्म रूप पुद्गल स्कंधों और जीवप्रदेशों का जो बंध होता है उसे परंपरा बंध कहते हैं । ... प्रथम समय में बंध हुआ, द्वितीय समय में भी उन पुद्गलों का बंध ही है, तृतीय समय में भी बंध ही है, इस प्रकार से बंध की निरंतरता का नाम बंध-परंपरा है । उस परंपरा से होने वाले बंधों को परंपरा-बंध समझना चाहिए ।
- जो अनंतानंत ज्ञानावरणीय कर्मरूप स्कंध निरंतर परस्पर में संबद्ध होकर स्थित हैं वे अनंतर बंध हैं ।... जो अनंतानंत कर्म-पुद्गल स्कंध परस्पर में संबद्ध होकर शेषकर्म संबद्धों से असंबद्ध होते हुए जीव के द्वारा इतर स्कंधों से संबंध को प्राप्त होते हैं, वे परंपरा बंध कहे जाते हैं ।
- और देखें बंध - 1।