अणु: Difference between revisions
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<span class="GRef">द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 26/73/11</span> <p class="SanskritText">अणुशब्देन व्यवहारेण पुद्गला उच्यंते....वस्तुवृत्त्या पुनरणुशब्दः सूक्ष्मवाचकः। </p> | <span class="GRef">द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 26/73/11</span> <p class="SanskritText">अणुशब्देन व्यवहारेण पुद्गला उच्यंते....वस्तुवृत्त्या पुनरणुशब्दः सूक्ष्मवाचकः। </p> | ||
<p class="HindiText">= अणु इस शब्द-द्वारा व्यवहार नय से पुद्गल कहे जाते हैं। वास्तव में अणु शब्द सूक्ष्म का वाचक है।</p> | <p class="HindiText">= अणु इस शब्द-द्वारा व्यवहार नय से पुद्गल कहे जाते हैं। वास्तव में अणु शब्द सूक्ष्म का वाचक है।</p> | ||
<p class="HindiText">अणुवयरयणपईव - अपर नाम अणुव्रतरत्नप्रदीप है। कवि लक्खण (वि. 1313) कृत श्रावकाचार विषयक अपभ्रंश ग्रंथ। </p> | <p class="HindiText">अणुवयरयणपईव - अपर नाम अणुव्रतरत्नप्रदीप है। कवि लक्खण (वि. 1313) कृत श्रावकाचार विषयक अपभ्रंश ग्रंथ। </p> | ||
<p class="HindiText">( <span class="GRef">तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा , पृष्ठ 4/176</span>)।</p> | <p class="HindiText">( <span class="GRef">तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा , पृष्ठ 4/176</span>)।</p> |
Revision as of 22:37, 13 December 2022
सिद्धांतकोष से
राजवार्तिक अध्याय 5/25,1/491/11
प्रदेशमात्रभाविमिः स्पर्शादिभिः गुणैस्सततं परिणमंत इत्येवं अण्यंते शब्द्यंते ये ते अणवः। सौक्ष्म्यादात्मादय आत्ममध्या आत्मांताश्च।
= प्रदेश मात्र-भावि स्पर्शादि गुणों से जो परिणमन करते हैं और इसी रूप से शब्द के विषय होते हैं वे अणु हैं। वे अत्यंत सूक्ष्म हैं, इनका आदि मध्य अंत एक ही है।
पंचास्तिकाय संग्रह / तात्पर्यवृत्ति / गाथा 4/12
अणुशब्देनात्र प्रदेशा गृह्यंते।
= अणु शब्द से यहाँ प्रदेश ग्रहण किये जाते हैं।
द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 26/73/11
अणुशब्देन व्यवहारेण पुद्गला उच्यंते....वस्तुवृत्त्या पुनरणुशब्दः सूक्ष्मवाचकः।
= अणु इस शब्द-द्वारा व्यवहार नय से पुद्गल कहे जाते हैं। वास्तव में अणु शब्द सूक्ष्म का वाचक है।
अणुवयरयणपईव - अपर नाम अणुव्रतरत्नप्रदीप है। कवि लक्खण (वि. 1313) कृत श्रावकाचार विषयक अपभ्रंश ग्रंथ।
( तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परंपरा , पृष्ठ 4/176)।
पुराणकोष से
पुद्गल का अविभागी अत्यंत सूक्ष्म अंश । अणुओं से स्कंध बनता है इसमें आठ स्पर्शों में से कोई भी दो अविरुद्ध स्पर्श, एक वर्ण, एक गंध और एक रस रहता है । ये आकार में गोल, पर्यायों की अपेक्षा अनित्य, अन्यथा नित्य होते हैं । महापुराण 24.148, हरिवंशपुराण 58.55 वीरवर्द्धमान चरित्र, 16.117