अनवधृत अनशन: Difference between revisions
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<span class="GRef">राजवार्तिक अध्याय 9/19,2/618/18</span> <p class="SanskritText">तद् द्विविधमवधृतानवधृतकालभेदात्। </p> | |||
<p class="HindiText">= वह अनशन अनवधृत और अवधृतकाल के भेद से दो प्रकार का होता है। </p> | |||
<p>( <span class="GRef">चारित्रसार पृष्ठ 134/2</span>)।</p> | |||
<span class="GRef">अनगार धर्मामृत अधिकार 7/11/665</span> <p class="HindiText"> = यह दो प्रकार का होता है - सकृद्भुक्तिया प्रोषध तथा दूसरा उपवास। ....उपवास दो प्रकार का माना है - अवधृतकाल और '''अनवधृतकाल'''।</p><br> | |||
<span class="GRef">राजवार्तिक अध्याय 2/19,2/618/20</span> <p class="SanskritText">'''अनवधृत'''कालमादेहोपरमात्। </p> | |||
<p class="HindiText">= शरीर छूटने तक उपवास धारण करना अनियमित काल अनशन कहलाता है। </p> | |||
<p class="HindiText">- और देखें [[ अनशन#3 | अनशन- 3 ]]।</p> | |||
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Revision as of 10:13, 16 December 2022
राजवार्तिक अध्याय 9/19,2/618/18
तद् द्विविधमवधृतानवधृतकालभेदात्।
= वह अनशन अनवधृत और अवधृतकाल के भेद से दो प्रकार का होता है।
( चारित्रसार पृष्ठ 134/2)।
अनगार धर्मामृत अधिकार 7/11/665
= यह दो प्रकार का होता है - सकृद्भुक्तिया प्रोषध तथा दूसरा उपवास। ....उपवास दो प्रकार का माना है - अवधृतकाल और अनवधृतकाल।
राजवार्तिक अध्याय 2/19,2/618/20
अनवधृतकालमादेहोपरमात्।
= शरीर छूटने तक उपवास धारण करना अनियमित काल अनशन कहलाता है।
- और देखें अनशन- 3 ।