अनात्मभूत लक्षण: Difference between revisions
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<span class="GRef"> राजवार्तिक/2/8/3/119/11 </span><span class="SanskritText">तल्लक्षणं द्विविधम्आत्मभूतमनात्मभूतं चेति। तत्र आत्मभूतमग्नेरौष्ण्यम्, अनात्मभूतं देवदत्तस्य दंडः।</span> =<span class="HindiText"> लक्षण आत्मभूत और <b>अनात्मभूत</b> के भेद से दो प्रकार होता है। अग्नि की उष्णता आत्मभूत लक्षण है और दंडी पुरुष का मेदक दंड अनात्मभूत है। </span><br /> | <span class="GRef"> राजवार्तिक/2/8/3/119/11 </span><span class="SanskritText">तल्लक्षणं द्विविधम्आत्मभूतमनात्मभूतं चेति। तत्र आत्मभूतमग्नेरौष्ण्यम्, अनात्मभूतं देवदत्तस्य दंडः।</span> =<span class="HindiText"> लक्षण आत्मभूत और <b>अनात्मभूत</b> के भेद से दो प्रकार होता है। अग्नि की उष्णता आत्मभूत लक्षण है और दंडी पुरुष का मेदक दंड अनात्मभूत है। </span><br /> | ||
<span class="GRef"> न्यायदीपिका/1/4/6/4 </span><span class="SanskritText">द्विविधं लक्षणम्, आत्मभूतमनात्ममूतं चेति। तत्र यद्वस्तुस्वरूपानुप्रविष्टं तदात्मभूतम्, यथाग्नेरौष्ण्यम्। औष्ण्यं ह्यग्नेः स्वरूपं सदग्निमवादिभ्यो व्यावर्त्तयति। तद्विपरीतमनात्मभूतम्, यथादंडः पुरुषस्य। दंडिनमानयेत्युक्ते हि दंडः पुरुषाननुप्रवष्टिः एव पुरुषं व्यावर्त्तयति। </span>= <span class="HindiText">लक्षण के दो भेद हैं − आत्मभूत और <b>अनात्मभूत</b>। जो वस्तु के स्वरूप में मिला हुआ हो उसे आत्मभूत लक्षण कहते हैं जैसे अग्नि की उष्णता। यह उष्णता अग्नि का स्वरूप होती हुई अग्नि को जलादि पदार्थों से जुदा करती है। इसलिए उष्णता अग्नि का आत्मभूत लक्षण है। जो वस्तु के स्वरूप में मिला हुआ न हो उससे पृथक् हो उसे <b>अनात्मभूत</b> लक्षण कहते हैं। जैसे – दंडीपुरुष का दंड। दंडी को लाओ ऐसा करने पर दंड पुरुष में न मिलता हुआ ही पुरुष को पुरुष भिन्न पदार्थों से पृथक् करता है। इसलिए दंड पुरुष का अनात्मभूत लक्षण है। <br /> | |||
<p class="HindiText">- देखें [[ लक्षण#2 | लक्षण-2 ]]।</p> | |||
Latest revision as of 13:30, 16 December 2022
राजवार्तिक/2/8/3/119/11 तल्लक्षणं द्विविधम्आत्मभूतमनात्मभूतं चेति। तत्र आत्मभूतमग्नेरौष्ण्यम्, अनात्मभूतं देवदत्तस्य दंडः। = लक्षण आत्मभूत और अनात्मभूत के भेद से दो प्रकार होता है। अग्नि की उष्णता आत्मभूत लक्षण है और दंडी पुरुष का मेदक दंड अनात्मभूत है।
न्यायदीपिका/1/4/6/4 द्विविधं लक्षणम्, आत्मभूतमनात्ममूतं चेति। तत्र यद्वस्तुस्वरूपानुप्रविष्टं तदात्मभूतम्, यथाग्नेरौष्ण्यम्। औष्ण्यं ह्यग्नेः स्वरूपं सदग्निमवादिभ्यो व्यावर्त्तयति। तद्विपरीतमनात्मभूतम्, यथादंडः पुरुषस्य। दंडिनमानयेत्युक्ते हि दंडः पुरुषाननुप्रवष्टिः एव पुरुषं व्यावर्त्तयति। = लक्षण के दो भेद हैं − आत्मभूत और अनात्मभूत। जो वस्तु के स्वरूप में मिला हुआ हो उसे आत्मभूत लक्षण कहते हैं जैसे अग्नि की उष्णता। यह उष्णता अग्नि का स्वरूप होती हुई अग्नि को जलादि पदार्थों से जुदा करती है। इसलिए उष्णता अग्नि का आत्मभूत लक्षण है। जो वस्तु के स्वरूप में मिला हुआ न हो उससे पृथक् हो उसे अनात्मभूत लक्षण कहते हैं। जैसे – दंडीपुरुष का दंड। दंडी को लाओ ऐसा करने पर दंड पुरुष में न मिलता हुआ ही पुरुष को पुरुष भिन्न पदार्थों से पृथक् करता है। इसलिए दंड पुरुष का अनात्मभूत लक्षण है।
- देखें लक्षण-2 ।