अनादेय: Difference between revisions
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<p>- देखें [[ आदेय ]]।</p> | <span class="GRef">सर्वार्थसिद्धि अध्याय 8/11/392/5</span> <p class="SanskritText">प्रभोपेतशरीरकारणमादेयनाम। निष्प्रभशरीरकारणमनादेयनाम। </p> | ||
<p class="HindiText">= प्रभा युक्त शरीर का कारण आदेय नाम कर्म है और निष्प्रभ शरीर का कारण <b>अनादेय</b> कर्म है।</p> | |||
<p class="HindiText">(<span class="GRef">राजवार्तिक अध्याय 8/11/36-37/579</span>), ( <span class="GRef">गोम्मट्टसार कर्मकांड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 33/30/16</span>)।</p> | |||
<span class="GRef">धवला पुस्तक 6/1,9-1,28/65/5</span> <p class="SanskritText">आदेयता ग्रहणीयता बहुमान्यता इत्यर्थः। जस्स कम्मस्स उदएण जीवस्स आदेयत्तमुप्पज्जदि तं कम्ममादेयं णाम। तव्विवरीयभावणिव्वत्तयकम्ममणादेयं णाम।</p> | |||
<p class="HindiText">= आदेयता, ग्रहणीयता और बहुमान्यता, ये तीनों शब्द एक अर्थ वाले हैं। जिस कर्म के उदय से जीव के बहुमान्यता उत्पन्न होती है, वह आदेय नामकर्म कहलाता है। उससे अर्थात् बहुमान्यता से विपरीत भाव (अनादरणीयता) को उत्पन्न करनेवाला <b>अनादेय</b> नामकर्म है।</p> | |||
<p class="HindiText">- देखें [[ आदेय ]]।</p> | |||
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Revision as of 13:44, 16 December 2022
सर्वार्थसिद्धि अध्याय 8/11/392/5
प्रभोपेतशरीरकारणमादेयनाम। निष्प्रभशरीरकारणमनादेयनाम।
= प्रभा युक्त शरीर का कारण आदेय नाम कर्म है और निष्प्रभ शरीर का कारण अनादेय कर्म है।
(राजवार्तिक अध्याय 8/11/36-37/579), ( गोम्मट्टसार कर्मकांड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 33/30/16)।
धवला पुस्तक 6/1,9-1,28/65/5
आदेयता ग्रहणीयता बहुमान्यता इत्यर्थः। जस्स कम्मस्स उदएण जीवस्स आदेयत्तमुप्पज्जदि तं कम्ममादेयं णाम। तव्विवरीयभावणिव्वत्तयकम्ममणादेयं णाम।
= आदेयता, ग्रहणीयता और बहुमान्यता, ये तीनों शब्द एक अर्थ वाले हैं। जिस कर्म के उदय से जीव के बहुमान्यता उत्पन्न होती है, वह आदेय नामकर्म कहलाता है। उससे अर्थात् बहुमान्यता से विपरीत भाव (अनादरणीयता) को उत्पन्न करनेवाला अनादेय नामकर्म है।
- देखें आदेय ।