अनिबद्ध मंगल: Difference between revisions
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<span class="GRef"> धवला 1/1,1,1/41/5 </span><span class="PrakritText">तत्थ णिबद्धं णाम, जो सुत्तस्सादीए सुत्तकत्तारेण णिबद्धदेवदाणमोक्कारो तं णिबद्धमगलं। जो सुत्तस्सादीए सुत्तारेण कयदेवदाणमोक्कारो तमणिबद्धमंगलं।</span> = <span class="HindiText">जो ग्रंथ के आदि में ग्रंथकार के द्वारा इष्टदेवता नमस्कार निबद्ध कर दिया जाता है अर्थात् श्लोकादिरूप में रचकर लिख दिया जाता है, उसे निबद्धमंगल कहते हैं। और जो ग्रंथ के आदि में ग्रंथकार द्वारा देवता को नमस्कार किया जाता है [अर्थात् लिपिबद्ध नहीं किया जाता (<span class="GRef"> धवला 2/ प्र.34</span>) बल्कि शास्त्र लिखना या बांचना प्रारंभ करते समय मन, वचन, काय से जो नमस्कार किया जाता है] उसे <strong>अनिबद्ध मंगल</strong> कहते हैं। (<span class="GRef"> पंचास्तिकाय / तात्पर्यवृत्ति/1/5/24 </span>)।</span><br /> | |||
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Revision as of 09:39, 17 December 2022
धवला 1/1,1,1/41/5 तत्थ णिबद्धं णाम, जो सुत्तस्सादीए सुत्तकत्तारेण णिबद्धदेवदाणमोक्कारो तं णिबद्धमगलं। जो सुत्तस्सादीए सुत्तारेण कयदेवदाणमोक्कारो तमणिबद्धमंगलं। = जो ग्रंथ के आदि में ग्रंथकार के द्वारा इष्टदेवता नमस्कार निबद्ध कर दिया जाता है अर्थात् श्लोकादिरूप में रचकर लिख दिया जाता है, उसे निबद्धमंगल कहते हैं। और जो ग्रंथ के आदि में ग्रंथकार द्वारा देवता को नमस्कार किया जाता है [अर्थात् लिपिबद्ध नहीं किया जाता ( धवला 2/ प्र.34) बल्कि शास्त्र लिखना या बांचना प्रारंभ करते समय मन, वचन, काय से जो नमस्कार किया जाता है] उसे अनिबद्ध मंगल कहते हैं। ( पंचास्तिकाय / तात्पर्यवृत्ति/1/5/24 )।
p class="HindiText">- और देखें मंगल ।