रति: Difference between revisions
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<li class="HindiText"> रति प्रकृति के बंध योग्य परिणाम ।<strong>−</strong>देखें [[ चारित्रमोहनीय_निर्देश#3.6 | चारित्रमोहनीय निर्देश 3.6 ]]। <br /> | <li class="HindiText"> रति प्रकृति के बंध योग्य परिणाम ।<strong>−</strong>देखें [[ चारित्रमोहनीय_निर्देश#3.6 | चारित्रमोहनीय निर्देश 3.6 ]]। <br /> | ||
<li class="HindiText"> रति उत्पादक वचन<strong>−</strong>देखें [[ वचन ]]। </li> | <li class="HindiText"> रति उत्पादक वचन<strong>−</strong>देखें [[ वचन#1.2 | वचन 1.2 ]]। </li> | ||
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Revision as of 08:14, 23 December 2022
सिद्धांतकोष से
(सर्वार्थसिद्धि/8/9/385/13) यदुदयाद्देशादिष्वौत्सुक्यं सा रतिः । अरतिस्तद्विपरीता । = जिसके उदय से देशादि में उत्सुकता होती है, वह रति है । अरति इससे विपरीत है । ( राजवार्तिक/8/9/4/574/17 ); ( गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/33/28/7 )
(धवला 6/1, 9-1, 24/47/5) रमणं रतिः, रम्यते अनया इति वा रतिः । जेसिं कम्मक्खंधाणमुदएण दव्व-खेत-काल-भावेसु रदी समुप्पज्जइ, तेसिं रदि त्ति सण्णा । दव्व-खेत-काल-भावेसु जेसिमुदएण जीवस्स अरई समुप्पज्जइ तेसिमरदि त्ति सण्णा । = रमने को रति कहते हैं अथवा जिसके द्वारा जीव विषयों में आसक्त होकर रमता है उसे रति कहते हैं । जिन कर्म स्कंधों के उदय से द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावों में राग उत्पन्न होता है, उनकी ‘रति’ यह संज्ञा है । जिन कर्म स्कंधों के उदय से द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावों में जीव के अरुचि उत्पन्न होती है, उनकी अरति संज्ञा है ( धवला 13/5, 5, 96/361/9 )।
(धवला 12/4, 2, 8, 10/285/6) नप्तृ-पुत्र-कलत्रादिषु रमणं रतिः । तत्प्रतिपक्षा अरतिः । = नाती, पुत्र एवं स्त्री आदिकों में रमण करने का नाम रति है । इसकी प्रतिपक्षभूत अरति कही जाती है ।
(नियमसार / तात्पर्यवृत्ति/6) मनोज्ञेषु वस्तुषु परमा प्रीतिरेव रतिः । = मनोहर वस्तुओं में परम प्रीति सो रति है ।
- अन्य संबंधित विषय
- रति राग है ।−देखें कषाय - 4 ।
- रति प्रकृति का बंध उदय व सत्त्व ।−देखें वह वह नाम ।
- रति प्रकृति के बंध योग्य परिणाम ।−देखें चारित्रमोहनीय निर्देश 3.6 ।
- रति उत्पादक वचन−देखें वचन 1.2 ।
पुराणकोष से
(1) बाईस परीषहों में एक परीषह-राग के निमित्त उपस्थित होने पर राग नहीं करना । (महापुराण 36.118)
(2) कुबेर की देवी । पूर्वभव में यह नंदनपुर के राजा अमितविक्रम की पुत्री धनश्री की बहिन अनंतश्री थी । इस पर्याय में इसने सुव्रता आर्यिका से दीक्षा ली, तप किया और अंत में मरकर आनत स्वर्ग के अनुदिश विमान में देव हुई । (महापुराण 63. 19-24)
(3) एक देवी । ऐशानेंद्र से राजा मेघरथ की रानी प्रियमित्रा के सौंदर्य की प्रशंसा सुनकर यह रतिषणा देवी के साथ सौंदर्य को देखने के लिए प्रियमित्रा के पास गयी थी । इसने उसे देखकर उसके अकृत्रिम सौंदर्य की तो प्रशंसा की, किंतु जब रानी को सुसज्जित देखा तब इसे रानी का सौंदर्य उतना रुचिकर नहीं लगा जितना रुचिकर उसे रानी का पूर्व रूप लगा था । संसार में कोई भी वस्तु नित्य नहीं है ऐसा ज्ञात करके यह रतिषेणा के साथ स्वर्ग लौट गयी थी । (महापुराण 63.288-295)
(4) किन्नरगीत नगर के राजा श्रीधर और रानी विद्या की पुत्री । यह विद्याधर अमररक्ष की पत्नी थी । इसके दस पुत्र और छ: पुत्रियां थीं । इसका पति (अमररक्ष) पुत्रों को राज्य देकर दीक्षित हो गया और तीव्र तपस्या द्वारा कर्मों का नाश कर सिद्ध हुआ । (पद्मपुराण 5.366, 368,376)
(5) एक दिक्कुमारी देवी । जांबवती ने अपने सौंदर्य से इसे लज्जित किया था । (हरिवंशपुराण 44.11)
(6) विद्याधर वायु तथा विद्याधरी सरस्वती की पुत्री और प्रद्युम्नकुमार की रानी । प्रद्युम्न को यह जयंतगिरि के दुर्जय वन में प्राप्त हुई थी । (हरिवंशपुराण 47.43)
(7) सहदेव पांडव की रानी । (हरिवंशपुराण 47.18), (पांडवपुराण 16.62)