अन्यथानुपपत्ति: Difference between revisions
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<p><span class="GRef"> सिद्धि विनिश्चय/मूल/5/23/361 </span> <span class="SanskritText">सतर्केणाह्यते रूपं प्रत्यक्षस्येतरस्य वा। अन्यथानुपपन्नत्व हेतोरेकलक्षणम् ।23।</span></p> | |||
<p><span class="GRef"> सिद्धि विनिश्चय/टीका/5/15/345/21 </span> <span class="SanskritText">विपक्षे हेतुसद्भावबाधकप्रमाणव्यावृत्तौ हेतुसामर्थ्यमन्यथानुपपत्तेरेव।</span> =<span class="HindiText">प्रत्यक्ष या आगमादि अन्य प्रमाणों के द्वारा ग्रहण किया गया साधन अन्यथा हो नहीं सकता, इस प्रकार ऊहापोह रूप ही हेतु का लक्षण है।23। <br> | |||
<strong>प्रश्न</strong>-विपक्ष में हेतु के सद्भाव के बाधक प्रमाण की व्यावृत्ति हो जाने पर हेतु की अपनी कौन सी शक्ति है जिससे कि साध्य की सिद्धि हो सके। <br> | |||
<strong>उत्तर</strong>-यह साधन अन्यथा हो नहीं सकता, इस प्रकार की अन्यथानुपपत्ति की ही सामर्थ्य है।</span></p> | |||
<p><span class="GRef"> सिद्धि विनिश्चय/मूल/6/32/429 </span><span class="SanskritText"> एकलक्षणसामर्थ्याद्धेत्वाभासा निवर्तिता:। विरुद्धानैकांतिकासिद्धाज्ञाताकिंचित्करादय:।32।</span> =<span class="HindiText">अन्यथानुपपत्ति रूप एक लक्षण की सामर्थ्य से ही विरुद्ध, अनैकांतिक, असिद्ध अज्ञात व अकिंचित्कर आदि हेत्वाभास उत्पन्न होते हैं। अर्थात् उपरोक्त लक्षण की वृत्ति विपरीत आदि प्रकारों से पायी जाने के कारण ही ये विरुद्ध आदि हेत्वाभास हैं।32|</span></p> | |||
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Revision as of 16:59, 23 December 2022
सिद्धि विनिश्चय/मूल/5/23/361 सतर्केणाह्यते रूपं प्रत्यक्षस्येतरस्य वा। अन्यथानुपपन्नत्व हेतोरेकलक्षणम् ।23।
सिद्धि विनिश्चय/टीका/5/15/345/21 विपक्षे हेतुसद्भावबाधकप्रमाणव्यावृत्तौ हेतुसामर्थ्यमन्यथानुपपत्तेरेव। =प्रत्यक्ष या आगमादि अन्य प्रमाणों के द्वारा ग्रहण किया गया साधन अन्यथा हो नहीं सकता, इस प्रकार ऊहापोह रूप ही हेतु का लक्षण है।23।
प्रश्न-विपक्ष में हेतु के सद्भाव के बाधक प्रमाण की व्यावृत्ति हो जाने पर हेतु की अपनी कौन सी शक्ति है जिससे कि साध्य की सिद्धि हो सके।
उत्तर-यह साधन अन्यथा हो नहीं सकता, इस प्रकार की अन्यथानुपपत्ति की ही सामर्थ्य है।
सिद्धि विनिश्चय/मूल/6/32/429 एकलक्षणसामर्थ्याद्धेत्वाभासा निवर्तिता:। विरुद्धानैकांतिकासिद्धाज्ञाताकिंचित्करादय:।32। =अन्यथानुपपत्ति रूप एक लक्षण की सामर्थ्य से ही विरुद्ध, अनैकांतिक, असिद्ध अज्ञात व अकिंचित्कर आदि हेत्वाभास उत्पन्न होते हैं। अर्थात् उपरोक्त लक्षण की वृत्ति विपरीत आदि प्रकारों से पायी जाने के कारण ही ये विरुद्ध आदि हेत्वाभास हैं।32|
-देखें हेतु ।