अपराध: Difference between revisions
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<span class="GRef">समयसार / मूल या टीका गाथा 305</span> <p class="SanskritText"> संसिद्धिराद्धसिद्धं साधियमाराधियं च एयट्ठं। अवगयराधो जो खलु चेया सो होइ अवराधो ॥304॥ </p><p class="HindiText">संसिद्धि, राध, सिद्ध, साधित और आराधित, ये एकार्थवाची शब्द हैं। जो आत्मा अपगतराध अर्थात् राध से रहित है वह आत्मा अपराध है। | |||
<p>( | <p class="HindiText">( <span class="GRef">नियमसार / तात्पर्यवृत्तिगाथा 84</span>)</p> | ||
<span class="GRef">समयसार / आत्मख्याति गाथा /300/कलश 186</span> <p class="SanskritText">परद्रव्यग्रहं कुर्वन् बध्येतैवापराधवान्। बध्येतानपराधो म स्वद्रव्ये संवृतो यतिः ॥186॥</p> | |||
<p class="HindiText">= जो परद्रव्यको ग्रहण करता है वह अपराधी है, इसलिए | <p class="HindiText">= जो परद्रव्यको ग्रहण करता है वह अपराधी है, इसलिए बंध में पड़ता है। और जो स्व-द्रव्य में ही संवृत है, ऐसा यति निरपराधी है, इसलिए बंधता नहीं है </p> | ||
<p>( | <p class="HindiText">( <span class="GRef">समयसार / आत्मख्याति गाथा 301</span>)।</p> | ||
Revision as of 09:45, 24 December 2022
समयसार / मूल या टीका गाथा 305
संसिद्धिराद्धसिद्धं साधियमाराधियं च एयट्ठं। अवगयराधो जो खलु चेया सो होइ अवराधो ॥304॥
संसिद्धि, राध, सिद्ध, साधित और आराधित, ये एकार्थवाची शब्द हैं। जो आत्मा अपगतराध अर्थात् राध से रहित है वह आत्मा अपराध है।
( नियमसार / तात्पर्यवृत्तिगाथा 84)
समयसार / आत्मख्याति गाथा /300/कलश 186
परद्रव्यग्रहं कुर्वन् बध्येतैवापराधवान्। बध्येतानपराधो म स्वद्रव्ये संवृतो यतिः ॥186॥
= जो परद्रव्यको ग्रहण करता है वह अपराधी है, इसलिए बंध में पड़ता है। और जो स्व-द्रव्य में ही संवृत है, ऐसा यति निरपराधी है, इसलिए बंधता नहीं है
( समयसार / आत्मख्याति गाथा 301)।