अर्थ: Difference between revisions
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<span class="GRef">राजवार्तिक अध्याय 1/2/6/19/23</span> <p class="SanskritText">अर्यते गम्यते ज्ञायते इत्यर्थः।</p> | <span class="GRef">राजवार्तिक अध्याय 1/2/6/19/23</span> <p class="SanskritText">अर्यते गम्यते ज्ञायते इत्यर्थः।</p> | ||
<p class="HindiText">= जो जाना जाये या निश्चय किया जाये उसे अर्थ कहते हैं।</p> | <p class="HindiText">= जो जाना जाये या निश्चय किया जाये उसे अर्थ कहते हैं।</p> | ||
<p>(<span class="GRef">राजवार्तिक अध्याय 1/33/1/95/4</span>), (<span class="GRef"> धवला पुस्तक 12/4,2,14,2/478/7</span>), ( <span class="GRef">धवला पुस्तक 13/5,5,50/281/12</span>), (<span class="GRef"> न्यायविनिश्चय/ वृत्ति./1/9/165/23</span>) ( स्याद्वादमंजरी श्लोक 28/307/15</span>) (<span class="GRef"> पंचाध्यायी / पूर्वार्ध श्लोक 158</span>)।</p><br> | <p>(<span class="GRef">राजवार्तिक अध्याय 1/33/1/95/4</span>), (<span class="GRef"> धवला पुस्तक 12/4,2,14,2/478/7</span>), ( <span class="GRef">धवला पुस्तक 13/5,5,50/281/12</span>), (<span class="GRef"> न्यायविनिश्चय/ वृत्ति./1/9/165/23</span>) ( <span class="GRef">स्याद्वादमंजरी श्लोक 28/307/15</span>) (<span class="GRef"> पंचाध्यायी / पूर्वार्ध श्लोक 158</span>)।</p><br> | ||
<p class="HindiText"><b>2.अर्थ = द्रव्य गुण पर्याय</b></p> | <p class="HindiText"><b>2.अर्थ = द्रव्य गुण पर्याय</b></p> | ||
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<p class="HindiText">= द्रव्य ही अर्थ या प्रयोजन जिसका सो द्रव्यार्थिक नय है।</p> | <p class="HindiText">= द्रव्य ही अर्थ या प्रयोजन जिसका सो द्रव्यार्थिक नय है।</p> | ||
<p>(<span class="GRef">राजवार्तिक अध्याय 1/33/1-95/8</span>) (<span class="GRef"> धवला पुस्तक 1/1,1,1/83/11</span>) (<span class="GRef"> धवला पुस्तक 9/4,1,45/170/1</span>) ( <span class="GRef">आलापपद्धति अधिकार 9</span>)</p> | <p>(<span class="GRef">राजवार्तिक अध्याय 1/33/1-95/8</span>) (<span class="GRef"> धवला पुस्तक 1/1,1,1/83/11</span>) (<span class="GRef"> धवला पुस्तक 9/4,1,45/170/1</span>) ( <span class="GRef">आलापपद्धति अधिकार 9</span>)</p> | ||
राजवार्तिक अध्याय 4/42/15</span> <p class="SanskritText">अर्थाकरणसंभव अभिप्रायादिशब्दः न्यायात्कल्पितो अर्थादिगम्यः।</p> | <span class="GRef">राजवार्तिक अध्याय 4/42/15</span> <p class="SanskritText">अर्थाकरणसंभव अभिप्रायादिशब्दः न्यायात्कल्पितो अर्थादिगम्यः।</p> | ||
<p class="HindiText">= अर्थ, अकरण, संभव, अभिप्राय आदि शब्द न्यायसे कल्पित किये हुए अर्थाधिगम्य कहलाते हैं, जैसे रोटी खाते हुए `सैंधव लाओ' कहनेसे नमक ही लाना, घोड़ा नहीं ऐसा स्पष्ट अभिप्राय न्यायसे सिद्ध है।</p> | <p class="HindiText">= अर्थ, अकरण, संभव, अभिप्राय आदि शब्द न्यायसे कल्पित किये हुए अर्थाधिगम्य कहलाते हैं, जैसे रोटी खाते हुए `सैंधव लाओ' कहनेसे नमक ही लाना, घोड़ा नहीं ऐसा स्पष्ट अभिप्राय न्यायसे सिद्ध है।</p> | ||
<span class="GRef">न्यायदीपिका अधिकार 3/$73</span> <p class="SanskritText">अर्थस्तावत्तात्पर्यरूढ इति यावत्। अर्थ एव तात्पर्यमेव वचसीत्यभियुक्तवचनात्।</p> | <span class="GRef">न्यायदीपिका अधिकार 3/$73</span> <p class="SanskritText">अर्थस्तावत्तात्पर्यरूढ इति यावत्। अर्थ एव तात्पर्यमेव वचसीत्यभियुक्तवचनात्।</p> |
Revision as of 11:04, 27 December 2022
सिद्धांतकोष से
1.अर्थ = जो जाना जाये
सर्वार्थसिद्धि अध्याय 1/2/8
अर्यत् इत्यर्थो निश्चीयत इति यावत्।
= जो निश्चय किया जाता है उसे अर्थ कहते हैं।
राजवार्तिक अध्याय 1/2/6/19/23
अर्यते गम्यते ज्ञायते इत्यर्थः।
= जो जाना जाये या निश्चय किया जाये उसे अर्थ कहते हैं।
(राजवार्तिक अध्याय 1/33/1/95/4), ( धवला पुस्तक 12/4,2,14,2/478/7), ( धवला पुस्तक 13/5,5,50/281/12), ( न्यायविनिश्चय/ वृत्ति./1/9/165/23) ( स्याद्वादमंजरी श्लोक 28/307/15) ( पंचाध्यायी / पूर्वार्ध श्लोक 158)।
2.अर्थ = द्रव्य गुण पर्याय
सर्वार्थसिद्धि अध्याय 1/17/116/2
``इयर्ति पर्यायांस्तैर्वाऽर्यत इत्यर्थो द्रव्यं..।
= जो पर्यायोंको प्राप्त होता है, या जो पर्यायोंके द्वारा प्राप्त किया जाता है, यह अर्थ शब्दकी व्युत्पत्ति है। इसके अनुसार अर्थ द्रव्य ठहरता है।
(राजवार्तिक अध्याय 1/17/65/30)
सर्वार्थसिद्धि अध्याय 9/44/55
अर्थ ध्येयो द्रव्यं पर्यायो वा।
= अर्थ ध्येयको कहते हैं। इससे द्रव्य और पर्याय लिये जाते हैं।
राजवार्तिक अध्याय 1/33/1/95/4
अर्यते गम्यते निष्पाद्यत इत्यर्थः कार्यम्।
= जो जाना जाता है, प्राप्त किया जाता है, या निष्पादन किया जाता है वह `अर्थ' कार्य या पर्याय है।
धवला पुस्तक 13/5,5,50/281/12
अर्यते गम्यते परिच्छिद्यत इति अर्थो नव पदार्थाः।
= जाना जाता है, वह अर्थ है। यहाँ अर्थ पदसे नौ पदार्थ लिये गये हैं।
परीक्षामुख परिच्छेद 4/1
सामान्यविशेषात्मा तदर्थो विषयः।
= सामान्य और विशेष स्वरूप अर्थात् द्रव्य और पर्याय स्वरूप पदार्थ प्रमाण (ज्ञान) का विषय होता है।
प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा 87
गुणपर्यायानियति गुणपर्यायैरर्यंत इति वा अर्था द्रव्याणि, द्रव्याण्याश्रयत्वेनेय्रति द्रव्यैराश्रयभूतैरर्यंत इति वा अर्था गुणाः, द्रव्याणि क्रमपरिणामेनार्यंत इति वा अर्थाः पर्यायाः।
= जो गुणोंको और पर्यायोंको प्राप्त करते हैं, अथवा जो गुणों और पर्यायों के द्वारा प्राप्त किये जाते हैं ऐसे `अर्थ' द्रव्य हैं। जो द्रव्योंको आश्रयके रूपमें प्राप्त करते हैं अथवा जो आश्रयभूत द्रव्योंके द्वारा प्राप्त किये जाते हैं ऐसे `अर्थ' गुण हैं। जो द्रव्योंको क्रम परिणामसे प्राप्त करते हैं, अथवा जो द्रव्योंके द्वारा क्रम परिणासे प्राप्त किये जाते हैं, ऐसे `अर्थ' पर्याय हैं।
न्यायदीपिका/3/76
कोऽयमर्थो नाम। उच्यते। अर्थोऽनेकांतः।
= अर्थ किसे कहते हैं-अनेकांतको अर्थ कहते हैं।
3.अर्थ = ज्ञेयरूप विश्व
प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका / गाथा 124
तत्र कः खल्वर्थः, स्वपरविभागेनावस्थितं विश्वं।
= अर्थ क्या है? स्व परके विभागपूर्वक अवस्थित विश्व ही अर्थ है। (पं.घ./पू/541) ( पंचाध्यायी / उत्तरार्ध श्लोक 391) - देखें नय - I.4 समस्त विश्व शब्द, अर्थ व ज्ञान इन तीनमें विभक्त हैं।
4.अर्थ = श्रुतज्ञान
धवला पुस्तक 14/5,6,12/8/8
अत्थो गणहरदेवो, आगमसुत्तेण विणा सयलसुदणाण पज्जाएण परिणदत्तादो। तेण समं सुदणाणं अत्थसमं अथवा अत्थी बीजपदं, तत्तो उप्पणं सयलसुदणाणमत्थसमं।
= `अर्थ' गणधरदेवका नाम है, क्योंकि, वे आगम सूत्रके बिना सफल श्रुतज्ञानरूप पर्यायसे परिणत रहते हैं। इनके समान जो श्रुतज्ञान होता है वह अर्थ सम श्रुतज्ञान है? अथवा अर्थ बीज पदको कहते हैं, इससे जो समस्त श्रुतज्ञान उत्पन्न होता है वह अर्थ समश्रुतज्ञान है।
5.अर्थ = प्रयोजन
सर्वार्थसिद्धि अध्याय 1/6/21
द्रव्यमर्थः प्रयोजनमस्येत्यसौ द्रव्यार्थिकः।
= द्रव्य ही अर्थ या प्रयोजन जिसका सो द्रव्यार्थिक नय है।
(राजवार्तिक अध्याय 1/33/1-95/8) ( धवला पुस्तक 1/1,1,1/83/11) ( धवला पुस्तक 9/4,1,45/170/1) ( आलापपद्धति अधिकार 9)
राजवार्तिक अध्याय 4/42/15
अर्थाकरणसंभव अभिप्रायादिशब्दः न्यायात्कल्पितो अर्थादिगम्यः।
= अर्थ, अकरण, संभव, अभिप्राय आदि शब्द न्यायसे कल्पित किये हुए अर्थाधिगम्य कहलाते हैं, जैसे रोटी खाते हुए `सैंधव लाओ' कहनेसे नमक ही लाना, घोड़ा नहीं ऐसा स्पष्ट अभिप्राय न्यायसे सिद्ध है।
न्यायदीपिका अधिकार 3/$73
अर्थस्तावत्तात्पर्यरूढ इति यावत्। अर्थ एव तात्पर्यमेव वचसीत्यभियुक्तवचनात्।
= `अर्थ' पद तात्पर्यमें रूढ़ है, अर्थात् प्रयोजनार्थक हैं, क्योंकि `अर्थ ही या तात्पर्य ही वचनोंमें हैं' ऐसा आर्ष वचन है।
6.`अर्थ' पदके अनेकों अर्थ
राजवार्तिक अध्याय 1/2/19/20/31
अर्थशब्दोऽर्थमनेकार्थः -क्वचिद् द्रव्यगुणकर्मसु वर्तते `अर्थ इति द्रव्यगुणकर्मसु' (वैशेषिकसूत्र/7/2/3 ) इति वचनात्। क्वचित् प्रयोजने वर्तते `किमर्थ'मिहागमनं भवतः?' किं प्रयोजनमिति। क्वचिद्धने वर्तते अर्थवानयं देवदत्तः धनवानिति। क्वचिद्भिधेये वर्तते शब्दार्थसंबंध इति।
= `अर्थ' शब्दके अनेक अर्थ हैं- 1. वैशेषिक शास्त्रमें द्रव्य गुण कर्म इन तीन पदार्थोंकी अर्थ संज्ञा है। 2. `आप यहाँ किस अर्थ आये हैं' यहाँ अर्थ शब्दका अर्थ प्रयोजन है। 3. `देवदत्त अर्थवान है' यहाँ अर्थ शब्द धनके अर्थमें ग्रहण किया गया है-अर्थवान अर्थात् धनवान। 4. `शब्दार्थसंबंध' इस पदमें अर्थ शब्द का अर्थ अभिधेय या वाच्य है।
प्रा.वि./वृ./1/7/140/15
अर्थोऽभिधेयः।
= अर्थ अर्थात् अभिधेय
( भगवती आराधना / विजयोदयी टीका / गाथा 113/261/12)।
पंचाध्यायी / पूर्वार्ध श्लोक 143
सत्ता सत्त्वं सद्वा सामान्यं द्रव्यमन्वयो वस्तु। अर्थो विधि रविशेषादेकार्थवाचका अमी शब्दाः ॥143॥
= सत्ता, सत्त्व अथवा सत्, सामान्य, द्रव्य, अन्वय, वस्तु, अर्थ और विधि ये नौ शब्द सामान्य रूपसे एक द्रव्य रूप अर्थके ही वाचक हैं।
• वर्तमान पर्यायको ही अर्थ कहने संबंधी शंका - देखें केवलज्ञान - 5.2।
• शब्द अर्थ संबंध - देखें आगम - 4।
• अर्थकी अपेक्षा वस्तुमें भेदाभेद - देखें सप्तभंगी - 5.8
पुराणकोष से
(1) धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थों में दूसरा पुरुषार्थ । यह धर्म का फल है । यह चंचल है, कष्ट से प्राप्य और मनोवांछित सांसारिक सुख का दाता है । इसके त्याग से मुक्ति प्राप्त होती है । महापुराण 2.31-33, 9.137, पांडवपुराण 83.77, वीरवर्द्धमान चरित्र 5.62, 143
(2) अग्रयणीयपूर्व की चौदह वस्तुओं में आठवीं वस्तु । हरिवंशपुराण 10.77-80 देखें अग्रायणीयपूर्व