अविज्ञातार्थ: Difference between revisions
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<span class="GRef">न्यायदर्शन सूत्र / मूल या टीका अध्याय 5-2/9 </span><p class="SanskritText">परिषत्प्रतिवादिभ्यां त्रिरभिहितमप्यविज्ञातमविज्ञातार्थम् ॥4॥</p> | |||
<p class="SanskritText"><span class="GRef"> न्यायदर्शन सूत्र/ | <span class="GRef"> न्यायदर्शन सूत्र/ भाषा 5-2/9 </span><p class="SanskritText">यद्वाक्यं परिषदा प्रतिवादिना च त्रिरभिहितमपि न विज्ञायंते श्लिष्टशब्दमप्रतीतप्रयोगमतिद्रुताच्चरितमित्येवमादिना कारणेन तदविज्ञातमविज्ञाताथमसामर्थ्यसंवरणाय प्रयुक्तिमिति निग्रहस्थानमिति।</p> | ||
<p class="HindiText">= जिस अर्थ को वादी ऐसे शब्दों से कहे जो प्रसिद्ध न हों, इस कारण से, या अति शीघ्र उच्चारण के कारण से, या उच्चारित शब्द के बह्वर्थवाचक होने से अथवा प्रयोग प्रतीत न होने से, तीन बार कहने पर भी वादी का वाक्य किसी सभासद्, विद्वान् और प्रतिवादी से न समझा जाये तो ऐसे कहने से वादी `अविज्ञातार्थ नामानिग्रह स्थानमें आकर हार जाता है।</p> | <p class="HindiText">= जिस अर्थ को वादी ऐसे शब्दों से कहे जो प्रसिद्ध न हों, इस कारण से, या अति शीघ्र उच्चारण के कारण से, या उच्चारित शब्द के बह्वर्थवाचक होने से अथवा प्रयोग प्रतीत न होने से, तीन बार कहने पर भी वादी का वाक्य किसी सभासद्, विद्वान् और प्रतिवादी से न समझा जाये तो ऐसे कहने से वादी `अविज्ञातार्थ नामानिग्रह स्थानमें आकर हार जाता है।</p> | ||
<p>( श्लोकवार्तिक पुस्तक 4/न्या.201/384/9)</p> | <p>(<span class="GRef"> श्लोकवार्तिक पुस्तक 4/न्या.201/384/9 </span>)</p> | ||
Revision as of 13:41, 28 December 2022
न्यायदर्शन सूत्र / मूल या टीका अध्याय 5-2/9
परिषत्प्रतिवादिभ्यां त्रिरभिहितमप्यविज्ञातमविज्ञातार्थम् ॥4॥
न्यायदर्शन सूत्र/ भाषा 5-2/9
यद्वाक्यं परिषदा प्रतिवादिना च त्रिरभिहितमपि न विज्ञायंते श्लिष्टशब्दमप्रतीतप्रयोगमतिद्रुताच्चरितमित्येवमादिना कारणेन तदविज्ञातमविज्ञाताथमसामर्थ्यसंवरणाय प्रयुक्तिमिति निग्रहस्थानमिति।
= जिस अर्थ को वादी ऐसे शब्दों से कहे जो प्रसिद्ध न हों, इस कारण से, या अति शीघ्र उच्चारण के कारण से, या उच्चारित शब्द के बह्वर्थवाचक होने से अथवा प्रयोग प्रतीत न होने से, तीन बार कहने पर भी वादी का वाक्य किसी सभासद्, विद्वान् और प्रतिवादी से न समझा जाये तो ऐसे कहने से वादी `अविज्ञातार्थ नामानिग्रह स्थानमें आकर हार जाता है।
( श्लोकवार्तिक पुस्तक 4/न्या.201/384/9 )