अशुभोपयोग: Difference between revisions
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< | <span class="GRef">मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 235</span> <p class="SanskritText">विपरीतः पापस्य तु आस्रवहेतुं विजानीहि।</p> | ||
<p class="HindiText">= (जीवों पर दया तथा सम्यग्दर्शनज्ञानरूपी उपयोग पुण्यकर्म के आस्रव के कारण हैं) तथा इनसे विपरीत पाप कर्म के आस्रव के कारण भूत निर्दयपना और मिथ्याज्ञानदर्शन भाव को '''अशुभ उपयोग''' कहते हैं।</p> | <p class="HindiText">= (जीवों पर दया तथा सम्यग्दर्शनज्ञानरूपी उपयोग पुण्यकर्म के आस्रव के कारण हैं) तथा इनसे विपरीत पाप कर्म के आस्रव के कारण भूत निर्दयपना और मिथ्याज्ञानदर्शन भाव को '''अशुभ उपयोग''' कहते हैं।</p> | ||
Revision as of 10:59, 29 December 2022
मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 235
विपरीतः पापस्य तु आस्रवहेतुं विजानीहि।
= (जीवों पर दया तथा सम्यग्दर्शनज्ञानरूपी उपयोग पुण्यकर्म के आस्रव के कारण हैं) तथा इनसे विपरीत पाप कर्म के आस्रव के कारण भूत निर्दयपना और मिथ्याज्ञानदर्शन भाव को अशुभ उपयोग कहते हैं।
अन्य परिभाषाओं के लिए देखें उपयोग - II. 4 ।