असावद्य कर्म: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<p><span class="GRef"> राजवार्तिक/3/36/2/201/6 </span><span class="SanskritText">षडप्येते अविरतिप्रवणत्वात् सावद्यकर्मार्या:, अल्पसावद्यकर्मार्या: श्रावका: श्राविकाश्च विरत्यविरतिपरिणतत्वात्, असावद्यकर्मार्या: संयता:, कर्मक्षयार्थोद्यतविरतिपरिणतत्वात्।</span> | |||
<span class="HindiText"> = ये उपरोक्त असि, मषि आदि छह सावद्यकर्म करने वाले सावद्य कर्मार्य हैं, क्योंकि वे अविरति प्रधानी हैं। विरति, अविरति दोनों रूप से परिणत होने के कारण श्रावक और श्राविकाएँ अल्प सावद्य कर्मार्य हैं। कर्म क्षय को उद्यत तथा विरतिरूप परिणत होने के कारण मुनिव्रत धारी संयत असावद्य कर्मार्य हैं।</span></p> | |||
<p class="HindiText"> देखें [[ सावद्य#4 | सावद्य - 4]]।</p> | |||
Line 9: | Line 12: | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: अ]] | [[Category: अ]] | ||
[[Category: चरणानुयोग]] |
Latest revision as of 13:35, 30 December 2022
राजवार्तिक/3/36/2/201/6 षडप्येते अविरतिप्रवणत्वात् सावद्यकर्मार्या:, अल्पसावद्यकर्मार्या: श्रावका: श्राविकाश्च विरत्यविरतिपरिणतत्वात्, असावद्यकर्मार्या: संयता:, कर्मक्षयार्थोद्यतविरतिपरिणतत्वात्। = ये उपरोक्त असि, मषि आदि छह सावद्यकर्म करने वाले सावद्य कर्मार्य हैं, क्योंकि वे अविरति प्रधानी हैं। विरति, अविरति दोनों रूप से परिणत होने के कारण श्रावक और श्राविकाएँ अल्प सावद्य कर्मार्य हैं। कर्म क्षय को उद्यत तथा विरतिरूप परिणत होने के कारण मुनिव्रत धारी संयत असावद्य कर्मार्य हैं।
देखें सावद्य - 4।