आत्मानुभव: Difference between revisions
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<span class="GRef">समयसार / आत्मख्याति गाथा 144</span> <p class="SanskritText">यतः प्रथमतः श्रुतज्ञानावष्टंभेन ज्ञानस्वभावात्मानं निश्चित्य ततः खल्वात्मख्यातये परख्यातिहेतूनखिला एवेंद्रियानिंद्रियबुद्धीरवधार्य आत्माभिमुखीकृतमतिज्ञानतत्त्वतः, तथा नानाविधनयपक्षालंबनेनानेकविकल्पैराफुयंतीः श्रुतज्ञानबुद्धिरप्यवधार्य श्रुतज्ञानतत्त्वमप्यात्माभिमुखीकुर्वंनत्यंतमविकल्पो भूत्वा झगित्येव स्वरसत एव व्यक्तीभवंतमादिमध्यांतविमुक्तमनाकुलमेकं केवलमखिलस्यापि विश्वस्योपरितरंतमिबाखंडप्रतिभासमयमनंतं विज्ञान घनं परमात्मानं समयसारं विंदंनैवात्मा सम्यग्दृश्यते ज्ञायते च। </p> | <span class="GRef">समयसार / आत्मख्याति गाथा 144</span> <p class="SanskritText">यतः प्रथमतः श्रुतज्ञानावष्टंभेन ज्ञानस्वभावात्मानं निश्चित्य ततः खल्वात्मख्यातये परख्यातिहेतूनखिला एवेंद्रियानिंद्रियबुद्धीरवधार्य आत्माभिमुखीकृतमतिज्ञानतत्त्वतः, तथा नानाविधनयपक्षालंबनेनानेकविकल्पैराफुयंतीः श्रुतज्ञानबुद्धिरप्यवधार्य श्रुतज्ञानतत्त्वमप्यात्माभिमुखीकुर्वंनत्यंतमविकल्पो भूत्वा झगित्येव स्वरसत एव व्यक्तीभवंतमादिमध्यांतविमुक्तमनाकुलमेकं केवलमखिलस्यापि विश्वस्योपरितरंतमिबाखंडप्रतिभासमयमनंतं विज्ञान घनं परमात्मानं समयसारं विंदंनैवात्मा सम्यग्दृश्यते ज्ञायते च। </p> |
Revision as of 11:07, 6 January 2023
<p class="HindiText" id="2.4"> आत्मानुभव करने की विधि
समयसार / आत्मख्याति गाथा 144
यतः प्रथमतः श्रुतज्ञानावष्टंभेन ज्ञानस्वभावात्मानं निश्चित्य ततः खल्वात्मख्यातये परख्यातिहेतूनखिला एवेंद्रियानिंद्रियबुद्धीरवधार्य आत्माभिमुखीकृतमतिज्ञानतत्त्वतः, तथा नानाविधनयपक्षालंबनेनानेकविकल्पैराफुयंतीः श्रुतज्ञानबुद्धिरप्यवधार्य श्रुतज्ञानतत्त्वमप्यात्माभिमुखीकुर्वंनत्यंतमविकल्पो भूत्वा झगित्येव स्वरसत एव व्यक्तीभवंतमादिमध्यांतविमुक्तमनाकुलमेकं केवलमखिलस्यापि विश्वस्योपरितरंतमिबाखंडप्रतिभासमयमनंतं विज्ञान घनं परमात्मानं समयसारं विंदंनैवात्मा सम्यग्दृश्यते ज्ञायते च।
= प्रथम श्रुतज्ञान के अवलंबन से ज्ञानस्वभाव आत्मा का निश्चय करके, और फिर आत्मा की प्रसिद्धि के लिए, पर पदार्थ की प्रसिद्धि के कारणभूत इंद्रियों और मनके द्वारा प्रवर्तमान बुद्धियों को मर्यादा में लेकर जिसने मतिज्ञान तत्त्व को आत्मसम्मुख किया है; तथा जो नाना प्रकार के नयपक्षों के आलंबन से होने वाले अनेक विकल्पों के द्वारा आकुलता उत्पन्न करनेवाली श्रुतज्ञान की बुद्धियों को भी मर्यादा में लाकर श्रुतज्ञान तत्त्व को भी आत्मसम्मुख करता हुआ, अत्यंत विकल्प रहित होकर, तत्काल निजरस से ही प्रकट होता हुआ, आदि, मध्य और अंत से रहित, अनाकुल, केवल, एक, संपूर्ण ही विश्व पर मानो तैरता हो ऐसे अखंड प्रतिभासमय, अनंत, विज्ञानघन, परमात्मारूप समयसार का जब आत्मा अनुभव करता है, तब उसी समय आत्मा सम्यक्तया दिखाई देता है, और ज्ञात होता है।
देखें अनुभव