इंगिनी: Difference between revisions
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<p><span class="SanskritText"><span class="GRef"> धवला 1/1,1,1/23/4 </span>तत्रात्मपरोपकारनिरपेक्षं प्रायोपगमनम् । आत्मोपकारसव्यपेक्षं परोपकारनिरपेक्षं इंगिनीमरणम् । आत्मपरोपकारसव्यपेक्षं भक्तप्रत्याख्यानमिति।</span> =<span class="HindiText">[भोजन का क्रमिक त्याग करके शरीर को कृश करने की अपेक्षा तीनों समान हैं। अंतर है शरीर के प्रति उपेक्षा भाव में] तहाँ अपने और पर के उपकार की अपेक्षा रहित समाधिमरण को प्रायोपगमन विधान कहते हैं। जिस संन्यास में अपने द्वारा किये गये उपकार की अपेक्षा रहती है किंतु दूसरे के द्वारा किये गये वैयावृत्त्य आदि उपकार की अपेक्षा सर्वथा नहीं रहती, उसे '''इंगिनी''' समाधि कहते हैं। जिस संन्यास में अपने और दूसरे दोनों के द्वारा किये गये उपकार की अपेक्षा रहती है, उसे भक्तप्रत्याख्यान संन्यास कहते हैं। </span></p> | |||
<p class="HindiText">देखें [[ सल्लेखना#3.1 | सल्लेखना - 3.1]] </p> | |||
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Revision as of 11:09, 12 January 2023
धवला 1/1,1,1/23/4 तत्रात्मपरोपकारनिरपेक्षं प्रायोपगमनम् । आत्मोपकारसव्यपेक्षं परोपकारनिरपेक्षं इंगिनीमरणम् । आत्मपरोपकारसव्यपेक्षं भक्तप्रत्याख्यानमिति। =[भोजन का क्रमिक त्याग करके शरीर को कृश करने की अपेक्षा तीनों समान हैं। अंतर है शरीर के प्रति उपेक्षा भाव में] तहाँ अपने और पर के उपकार की अपेक्षा रहित समाधिमरण को प्रायोपगमन विधान कहते हैं। जिस संन्यास में अपने द्वारा किये गये उपकार की अपेक्षा रहती है किंतु दूसरे के द्वारा किये गये वैयावृत्त्य आदि उपकार की अपेक्षा सर्वथा नहीं रहती, उसे इंगिनी समाधि कहते हैं। जिस संन्यास में अपने और दूसरे दोनों के द्वारा किये गये उपकार की अपेक्षा रहती है, उसे भक्तप्रत्याख्यान संन्यास कहते हैं।
देखें सल्लेखना - 3.1