ईश्वर: Difference between revisions
From जैनकोष
(Undo revision 91612 by Yogesh Singatkar (talk)) Tag: Undo |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<span class="GRef"> द्रव्यसंग्रह टीका/14/47/7 </span><span class="SanskritText"> केवलज्ञानादिगुणैश्वर्ययुक्तस्य सतो देवेंद्रादयोऽपि तत्पदाभिलाषिणः संतो यस्याज्ञां कुर्वंति स ईश्वराभिधानो भवति।</span> = <span class="HindiText">केवलज्ञानादि गुण रूप ऐश्वर्य से युक्त होने के कारण जिसके पद की अभिलाषा करते हुए देवेंद्र आदि भी जिसकी आज्ञा का पालन करते हैं, अतः वह परमात्मा ईश्वर होता है। </span><br /> | |||
<span class="GRef"> समाधिशतक/ </span>टी./6/225/17 <span class="SanskritText">ईश्वरः इंद्राद्यसंभविना, अंतरंगबहिरंगेषु परमैश्वर्येण सदैव संपन्न। </span>= <span class="HindiText">इंद्रादिक को जो असंभव ऐसे अंतरंग और बहिरंग परम ऐश्वर्य के द्वारा जो सदैव संपन्न रहता है, उसे ईश्वर कहते हैं। <br /> | |||
<p class="HindiText">देखें [[ परमात्मा#3 | परमात्मा - 3]]।</p> | |||
Line 9: | Line 14: | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: ई]] | [[Category: ई]] | ||
[[Category: द्रव्यानुयोग]] |
Revision as of 14:49, 16 January 2023
द्रव्यसंग्रह टीका/14/47/7 केवलज्ञानादिगुणैश्वर्ययुक्तस्य सतो देवेंद्रादयोऽपि तत्पदाभिलाषिणः संतो यस्याज्ञां कुर्वंति स ईश्वराभिधानो भवति। = केवलज्ञानादि गुण रूप ऐश्वर्य से युक्त होने के कारण जिसके पद की अभिलाषा करते हुए देवेंद्र आदि भी जिसकी आज्ञा का पालन करते हैं, अतः वह परमात्मा ईश्वर होता है।
समाधिशतक/ टी./6/225/17 ईश्वरः इंद्राद्यसंभविना, अंतरंगबहिरंगेषु परमैश्वर्येण सदैव संपन्न। = इंद्रादिक को जो असंभव ऐसे अंतरंग और बहिरंग परम ऐश्वर्य के द्वारा जो सदैव संपन्न रहता है, उसे ईश्वर कहते हैं।
देखें परमात्मा - 3।