उत्सर्ग व अपवाद पद्धति: Difference between revisions
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<span class="GRef"> पंचास्तिकाय/तात्पर्यवृत्ति/१४६/२१२/९</span> <span class="SanskritText">सकलश्रुतधारिणां ध्यानं भवति तदुत्सर्गवचनं, अपवादव्याख्याने तु पञ्चसमितित्रिगुप्तिप्रतिपादकश्रुतिपरिज्ञान-मात्रेणैव केवलज्ञानं जायते।... वज्रवृषभनाराचसंज्ञप्रथमसंहननेन ध्यानं भवति तदप्युत्सर्गवचनं अपवादव्याख्यानं पुनरपूर्वादिगुणस्थानवर्तिनां उपशमक्षपकश्रेण्योर्यच्छुक्लध्यानं तदपेक्षया स नियमः अपूर्वादधस्तन-गुणस्थानेषु धर्मध्याने निषेधकं न भवति।</span> =<span class="HindiText"> सकल श्रुतधारियों को ध्यान होता है यह '''उत्सर्ग वचन''' है, '''अपवाद व्याख्यान''' से तो पाँच समिति और तीन गुप्ति को प्रतिपादन करनेवाले शास्त्र के ज्ञान से भी केवलज्ञान होता है।... वज्रवृषभनाराच नाम की प्रथम संहनन से ही ध्यान होता है यह '''उत्सर्ग वचन''' है। '''अपवाद रूप व्याख्यान''' से तो अपूर्वादि गुणस्थानवर्ती जीवों के उपशम व क्षपक श्रेणी में जो शुक्लध्यान होता है, उसकी अपेक्षा यह नियम है। अपूर्वकरण गुणस्थान से नीचे के गुणस्थानों में धर्मध्यान का निषेध नहीं होता है। (<span class="GRef">द्रव्यसंग्रह/टीका/५७/२३२/५</span>)। | <span class="GRef"> पंचास्तिकाय/तात्पर्यवृत्ति/१४६/२१२/९</span> <span class="SanskritText">सकलश्रुतधारिणां ध्यानं भवति तदुत्सर्गवचनं, अपवादव्याख्याने तु पञ्चसमितित्रिगुप्तिप्रतिपादकश्रुतिपरिज्ञान-मात्रेणैव केवलज्ञानं जायते।... वज्रवृषभनाराचसंज्ञप्रथमसंहननेन ध्यानं भवति तदप्युत्सर्गवचनं अपवादव्याख्यानं पुनरपूर्वादिगुणस्थानवर्तिनां उपशमक्षपकश्रेण्योर्यच्छुक्लध्यानं तदपेक्षया स नियमः अपूर्वादधस्तन-गुणस्थानेषु धर्मध्याने निषेधकं न भवति।</span> =<span class="HindiText"> सकल श्रुतधारियों को ध्यान होता है यह '''उत्सर्ग वचन''' है, '''अपवाद व्याख्यान''' से तो पाँच समिति और तीन गुप्ति को प्रतिपादन करनेवाले शास्त्र के ज्ञान से भी केवलज्ञान होता है।... वज्रवृषभनाराच नाम की प्रथम संहनन से ही ध्यान होता है यह '''उत्सर्ग वचन''' है। '''अपवाद रूप व्याख्यान''' से तो अपूर्वादि गुणस्थानवर्ती जीवों के उपशम व क्षपक श्रेणी में जो शुक्लध्यान होता है, उसकी अपेक्षा यह नियम है। अपूर्वकरण गुणस्थान से नीचे के गुणस्थानों में धर्मध्यान का निषेध नहीं होता है। (<span class="GRef">द्रव्यसंग्रह/टीका/५७/२३२/५</span>)। | ||
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Revision as of 13:33, 21 January 2023
पंचास्तिकाय/तात्पर्यवृत्ति/१४६/२१२/९ सकलश्रुतधारिणां ध्यानं भवति तदुत्सर्गवचनं, अपवादव्याख्याने तु पञ्चसमितित्रिगुप्तिप्रतिपादकश्रुतिपरिज्ञान-मात्रेणैव केवलज्ञानं जायते।... वज्रवृषभनाराचसंज्ञप्रथमसंहननेन ध्यानं भवति तदप्युत्सर्गवचनं अपवादव्याख्यानं पुनरपूर्वादिगुणस्थानवर्तिनां उपशमक्षपकश्रेण्योर्यच्छुक्लध्यानं तदपेक्षया स नियमः अपूर्वादधस्तन-गुणस्थानेषु धर्मध्याने निषेधकं न भवति। = सकल श्रुतधारियों को ध्यान होता है यह उत्सर्ग वचन है, अपवाद व्याख्यान से तो पाँच समिति और तीन गुप्ति को प्रतिपादन करनेवाले शास्त्र के ज्ञान से भी केवलज्ञान होता है।... वज्रवृषभनाराच नाम की प्रथम संहनन से ही ध्यान होता है यह उत्सर्ग वचन है। अपवाद रूप व्याख्यान से तो अपूर्वादि गुणस्थानवर्ती जीवों के उपशम व क्षपक श्रेणी में जो शुक्लध्यान होता है, उसकी अपेक्षा यह नियम है। अपूर्वकरण गुणस्थान से नीचे के गुणस्थानों में धर्मध्यान का निषेध नहीं होता है। (द्रव्यसंग्रह/टीका/५७/२३२/५)।
देखें पद्धति ।