क्रमकरण: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<p class="HindiText">क्ष.सा./४२२-४२७ का सारार्थ—चारित्रमोहक्षपणा विधान के अन्तर्गत अनिवृत्तिकरण के काल में जो स्थितिबन्धापसरण व स्थितिसत्त्वापसरण किया जाता है, उसमें एक विशेष प्रकार का क्रम पड़ता है। मोहनीय तीसिय, बीसिय, वेदनीयनाम, गोत्र, इन प्रकृतियों के स्थितिबन्ध व स्थिति सत्त्व में परस्पर विशेष क्रम लिये अल्पबहुत्व रहता है। प्रत्येक संख्यात हजार स्थिति बन्धों के बीत जाने पर उस अल्पबहुत्व का क्रम भी बदल जाता है। इस प्रकार स्थिति बन्ध व सत्त्व घटते-घटते अन्त में।४२२-४२५। नाम व गोत्र से वेदनीय का ड्योढ़ा स्थितिबन्धनरूप क्रम लिये अल्पबहुत्व होना, सोई क्रमकरण कहिए।४२६। इसी प्रकार नाम व गोत्र से वेदनीय का स्थिति सत्त्व साधिक भया तब मोहादिक के क्रम लिये स्थिति सत्त्व का क्रमकरण भया।४२७। देखें - [[ अपकर्षण#3.2 | अपकर्षण / ३ / २ ]]।</p> | |||
[[क्रम | Previous Page]] | |||
[[क्रमण | Next Page]] | |||
[[Category:क]] | |||
Revision as of 22:15, 24 December 2013
क्ष.सा./४२२-४२७ का सारार्थ—चारित्रमोहक्षपणा विधान के अन्तर्गत अनिवृत्तिकरण के काल में जो स्थितिबन्धापसरण व स्थितिसत्त्वापसरण किया जाता है, उसमें एक विशेष प्रकार का क्रम पड़ता है। मोहनीय तीसिय, बीसिय, वेदनीयनाम, गोत्र, इन प्रकृतियों के स्थितिबन्ध व स्थिति सत्त्व में परस्पर विशेष क्रम लिये अल्पबहुत्व रहता है। प्रत्येक संख्यात हजार स्थिति बन्धों के बीत जाने पर उस अल्पबहुत्व का क्रम भी बदल जाता है। इस प्रकार स्थिति बन्ध व सत्त्व घटते-घटते अन्त में।४२२-४२५। नाम व गोत्र से वेदनीय का ड्योढ़ा स्थितिबन्धनरूप क्रम लिये अल्पबहुत्व होना, सोई क्रमकरण कहिए।४२६। इसी प्रकार नाम व गोत्र से वेदनीय का स्थिति सत्त्व साधिक भया तब मोहादिक के क्रम लिये स्थिति सत्त्व का क्रमकरण भया।४२७। देखें - अपकर्षण / ३ / २ ।