उद्भिन्न: Difference between revisions
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<p class="HindiText">देखें [[ आहार#II.4.4 | आहार - II.4.4]]; </p><br> | <p class="HindiText">देखें [[ आहार#II.4.4 | आहार - II.4.4]]; </p><br> | ||
<p class="HindiText"><b>2. वसतिका एक दोष</b>-</p> | <p class="HindiText"><b>2. वसतिका एक दोष</b>-</p> | ||
<span class="GRef"> भगवती आराधना / विजयोदया टीका/230/443/10 </span><span class="SanskritText">तत्रोद्गमो दोषो निरूप्यते ...... इष्टका-दिभिः, मृत्पिंडेन, वृत्या, कवाटेनोपलेन वा स्थगितं अपनीय दीयते यत्तदुद्भिन्नं । ....।</span> | |||
<p class="HindiText">ईंट, मिट्टी के पिंड, काँटों की बाड़ी अथवा किवाड़, पाषाणों से ढका हुआ जो घर खुला करके मुनियों को रहने के लिए देना वह उद्भिन्नदोष है ।</p> | <p class="HindiText">ईंट, मिट्टी के पिंड, काँटों की बाड़ी अथवा किवाड़, पाषाणों से ढका हुआ जो घर खुला करके मुनियों को रहने के लिए देना वह उद्भिन्नदोष है ।</p> | ||
<p class="HindiText">देखें [[ वसतिका ]]।</p> | <p class="HindiText">देखें [[ वसतिका ]]।</p> |
Latest revision as of 11:57, 23 January 2023
1. आहारका एक दोष-
मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 441 -
उद्गम दोष : पिहिदं लंछिदयं वा ओसहघिदसक्कारादि जं दव्वं। उब्भिण्णिऊण देयं उब्भिण्णं होदि णादव्वं ॥441॥
13. उद्भिन्न दोष - मिट्टी लाख आदि से ढका हुआ अथवा नाम की मोहर कर चिह्नित जो औषध घी या शक्कर आदि द्रव्य हैं अर्थात् सील बंद पदार्थों को उघाड़कर या खोलकर देना उद्भिन्न दोष है। इसमें चींटी आदि के प्रवेश का दोष लगता है ॥441॥
देखें आहार - II.4.4;
2. वसतिका एक दोष-
भगवती आराधना / विजयोदया टीका/230/443/10 तत्रोद्गमो दोषो निरूप्यते ...... इष्टका-दिभिः, मृत्पिंडेन, वृत्या, कवाटेनोपलेन वा स्थगितं अपनीय दीयते यत्तदुद्भिन्नं । ....।
ईंट, मिट्टी के पिंड, काँटों की बाड़ी अथवा किवाड़, पाषाणों से ढका हुआ जो घर खुला करके मुनियों को रहने के लिए देना वह उद्भिन्नदोष है ।
देखें वसतिका ।