उभयशुद्धि: Difference between revisions
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<p>सम्यग्ज्ञानका एक अंग</p> | <p class="HindiText">सम्यग्ज्ञानका एक अंग</p> | ||
< | <span class="GRef">मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 285</span> <p class=" PrakritText ">विंजणसुद्धं सुत्तं अत्थविसुद्धं च तदुभयविसुद्धं। पयदेण य जप्पंतो णाणविसुद्धो हवइ एसो।</p> | ||
<p class="HindiText">= जो | <p class="HindiText">= जो सूत्र को अक्षर शुद्ध, अर्थ शुद्ध अथवा दोनों कर शुद्ध सावधानी से पढ़ता पढ़ाता है उसी के शुद्ध ज्ञान होता है।</p> | ||
< | <span class="GRef">भगवती आराधना / विजयोदयी टीका / गाथा 113/261/17</span> <p class="SanskritText">तदुभयशुद्धिर्नाम तस्य व्यंजनस्य अर्थस्य च शुद्धिः।</p> | ||
<p class="HindiText">= | <p class="HindiText">= व्यंजन की शुद्धि और उसके वच्य अभिप्राय की जो शुद्धि है वह उभय शुद्धि है।</p> | ||
<p>2. अर्थ व्यंजन व उभय | <p class="HindiText">2. अर्थ व्यंजन व उभय शुद्धि में अंतर</p> | ||
< | <span class="GRef">भगवती आराधना / विजयोदयी टीका / गाथा 113/261/18</span><p class="SanskritText"> ननु व्यंजनार्थ शुद्ध्योः प्रतिपादितयो तदुभयशुद्धिर्गृहीता न तद्वतिरेकेण तदुभयशुद्धिर्नामास्ति ततः कथमष्टविधता। अत्रोच्यते पुरुषभेदापेक्षयेयं निरूपणा कश्चिदविपरीतं सूत्रार्थं व्याचष्टे सूत्रं तु विपरीतं। तत्तथा न कार्यमिति व्यंचनशुद्धिरुक्ता। अन्यस्तु सूत्रमविपरीतं पठन्नपि निरूपयत्यन्यथा सूत्रार्थं इति तन्निराकृतयेऽर्थविशुद्धिरुदाहृता। अपरस्तु सूत्रं विपरीतमधीते सूत्रार्थं च कथयितुकामो विपरीतं व्याचष्टे तदुभयापाकृतये उभयशुद्धिरुपन्यास्ता।</p> | ||
<p class="HindiText">= प्रश्न-ऊपर व्यंजनशुद्धि और अर्थशुद्धि इन | <p class="HindiText">= प्रश्न-ऊपर व्यंजनशुद्धि और अर्थशुद्धि इन दोनों का स्वरूप आप कह चुके हैं, उनमें ही इसका भी अंतर्भाव हो सकता है, इन दोनों को छोड़ कर तदुभय शुद्धि नाम की तीसरी शुद्धि है नहीं। अतः ज्ञान विनय के आठ प्रकार सिद्ध नहीं होते हैं। उत्तर-यहाँ पुरुष भेदों की अपेक्षा से निरूपण किया है जैसे। कोई पुरुष सूत्र का अर्थ तो ठीक कहता है, परंतु सूत्र को विपरीत पढ़ता है ठीक पढ़ता नहीं। दीर्घोच्चार के स्थानमें ह्रस्वोच्चार इत्यादि दोषयुक्त बोलता है। ऐसा दोषयुक्त पढ़ना नहीं चाहिए इस वास्ते व्यंजनशुद्धि कही है। दूसरा कोई पुरुष सूत्र को ठीक पढ़ लेता है। परंतु सूत्रार्थ का विपरीत निरूपण करता है। यह भी योग्य नहीं है। इसका निराकरण करने के लिए अर्थशुद्धि कही है। तीसरा आदमी सूत्र भी विपरीत पढ़ता है और उसका अर्थ भी अंटसंट कहता है। इन दोनों दोषों को दूर करने के लिए तदुभयशुद्धि को भिन्न मानना चाहिए।</p> | ||
Latest revision as of 11:33, 29 January 2023
सम्यग्ज्ञानका एक अंग
मूलाचार / आचारवृत्ति / गाथा 285
विंजणसुद्धं सुत्तं अत्थविसुद्धं च तदुभयविसुद्धं। पयदेण य जप्पंतो णाणविसुद्धो हवइ एसो।
= जो सूत्र को अक्षर शुद्ध, अर्थ शुद्ध अथवा दोनों कर शुद्ध सावधानी से पढ़ता पढ़ाता है उसी के शुद्ध ज्ञान होता है।
भगवती आराधना / विजयोदयी टीका / गाथा 113/261/17
तदुभयशुद्धिर्नाम तस्य व्यंजनस्य अर्थस्य च शुद्धिः।
= व्यंजन की शुद्धि और उसके वच्य अभिप्राय की जो शुद्धि है वह उभय शुद्धि है।
2. अर्थ व्यंजन व उभय शुद्धि में अंतर
भगवती आराधना / विजयोदयी टीका / गाथा 113/261/18
ननु व्यंजनार्थ शुद्ध्योः प्रतिपादितयो तदुभयशुद्धिर्गृहीता न तद्वतिरेकेण तदुभयशुद्धिर्नामास्ति ततः कथमष्टविधता। अत्रोच्यते पुरुषभेदापेक्षयेयं निरूपणा कश्चिदविपरीतं सूत्रार्थं व्याचष्टे सूत्रं तु विपरीतं। तत्तथा न कार्यमिति व्यंचनशुद्धिरुक्ता। अन्यस्तु सूत्रमविपरीतं पठन्नपि निरूपयत्यन्यथा सूत्रार्थं इति तन्निराकृतयेऽर्थविशुद्धिरुदाहृता। अपरस्तु सूत्रं विपरीतमधीते सूत्रार्थं च कथयितुकामो विपरीतं व्याचष्टे तदुभयापाकृतये उभयशुद्धिरुपन्यास्ता।
= प्रश्न-ऊपर व्यंजनशुद्धि और अर्थशुद्धि इन दोनों का स्वरूप आप कह चुके हैं, उनमें ही इसका भी अंतर्भाव हो सकता है, इन दोनों को छोड़ कर तदुभय शुद्धि नाम की तीसरी शुद्धि है नहीं। अतः ज्ञान विनय के आठ प्रकार सिद्ध नहीं होते हैं। उत्तर-यहाँ पुरुष भेदों की अपेक्षा से निरूपण किया है जैसे। कोई पुरुष सूत्र का अर्थ तो ठीक कहता है, परंतु सूत्र को विपरीत पढ़ता है ठीक पढ़ता नहीं। दीर्घोच्चार के स्थानमें ह्रस्वोच्चार इत्यादि दोषयुक्त बोलता है। ऐसा दोषयुक्त पढ़ना नहीं चाहिए इस वास्ते व्यंजनशुद्धि कही है। दूसरा कोई पुरुष सूत्र को ठीक पढ़ लेता है। परंतु सूत्रार्थ का विपरीत निरूपण करता है। यह भी योग्य नहीं है। इसका निराकरण करने के लिए अर्थशुद्धि कही है। तीसरा आदमी सूत्र भी विपरीत पढ़ता है और उसका अर्थ भी अंटसंट कहता है। इन दोनों दोषों को दूर करने के लिए तदुभयशुद्धि को भिन्न मानना चाहिए।