कर्म कारक: Difference between revisions
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<span class="GRef"> प्रवचनसार / तात्पर्यवृत्ति/16 </span><span class="SanskritText">नित्यानंदैकस्वभावेन स्वयं प्राप्यत्वात् कर्मकारकं भवति।</span>=<span class="HindiText">नित्यानंदरूप एक स्वभाव के द्वारा स्वयं प्राप्य होने से (आत्मा ही) '''कर्म कारक''' होता है।</span> | <span class="GRef"> प्रवचनसार / तात्पर्यवृत्ति/16 </span><span class="SanskritText">नित्यानंदैकस्वभावेन स्वयं प्राप्यत्वात् कर्मकारकं भवति।</span>=<span class="HindiText">नित्यानंदरूप एक स्वभाव के द्वारा स्वयं प्राप्य होने से (आत्मा ही) '''कर्म कारक''' होता है।</span> | ||
<span class="GRef"> राजवार्तिक/6/1/4/504/17 </span><span class="SanskritText">तत्त्रिविधं निर्वर्त्यं विकार्यं प्राप्यं चेति। तत् त्रितयमपि कर्तुरन्यत्।</span>=<span class="HindiText">यह '''कर्म कारक''' निर्वर्त्य, विकार्य और प्राप्य तीन प्रकार का होता है। ये तीनों कर्म कर्ता से भिन्न होते हैं।</span> | <span class="GRef"> राजवार्तिक/6/1/4/504/17 </span><span class="SanskritText">तत्त्रिविधं निर्वर्त्यं विकार्यं प्राप्यं चेति। तत् त्रितयमपि कर्तुरन्यत्।</span>=<span class="HindiText">यह '''कर्म कारक''' निर्वर्त्य, विकार्य और प्राप्य तीन प्रकार का होता है। ये तीनों कर्म कर्ता से भिन्न होते हैं।</span> | ||
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Latest revision as of 13:51, 14 February 2023
प्रवचनसार / तात्पर्यवृत्ति/16 नित्यानंदैकस्वभावेन स्वयं प्राप्यत्वात् कर्मकारकं भवति।=नित्यानंदरूप एक स्वभाव के द्वारा स्वयं प्राप्य होने से (आत्मा ही) कर्म कारक होता है।
राजवार्तिक/6/1/4/504/17 तत्त्रिविधं निर्वर्त्यं विकार्यं प्राप्यं चेति। तत् त्रितयमपि कर्तुरन्यत्।=यह कर्म कारक निर्वर्त्य, विकार्य और प्राप्य तीन प्रकार का होता है। ये तीनों कर्म कर्ता से भिन्न होते हैं।
देखें कर्ता ।