कर्मसमवायिनी क्रिया: Difference between revisions
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<span class="GRef"> राजवार्तिक/5/12/7/455/4 </span><span class="SanskritText">क्रिया द्विविधा-कर्तृसमवायिनी कर्मसमवायिनी चेति। तत्र कर्तृ समवायिनी आस्ते गच्छतीति। कर्मसमवायिनी ओदनं पचति, कुशूलं भिनत्तीति।</span>=<span class="HindiText">क्रिया दो प्रकार की होती है—कर्तृ समवायिनी क्रिया और <strong>कर्मसमवायिनी</strong> क्रिया । आस्ते गच्छति आदि क्रियाओं को | <span class="GRef"> राजवार्तिक/5/12/7/455/4 </span><span class="SanskritText">क्रिया द्विविधा-कर्तृसमवायिनी कर्मसमवायिनी चेति। तत्र कर्तृ समवायिनी आस्ते गच्छतीति। कर्मसमवायिनी ओदनं पचति, कुशूलं भिनत्तीति।</span>=<span class="HindiText">क्रिया दो प्रकार की होती है—कर्तृ समवायिनी क्रिया और <strong>कर्मसमवायिनी</strong> क्रिया । आस्ते गच्छति आदि क्रियाओं को कर्तृ समवायिनी क्रिया कहते हैं। और ओदन को पकाता है, घड़े को फोड़ता है आदि क्रियाओं को <strong>कर्मसमवायिनी</strong> क्रिया कहते हैं।</span> | ||
<span class="HindiText"> देखें [[ क्रिया#1 | क्रिया - 1]]।</span> | <span class="HindiText"> देखें [[ क्रिया#1 | क्रिया - 1]]।</span> |
Latest revision as of 15:21, 14 February 2023
राजवार्तिक/5/12/7/455/4 क्रिया द्विविधा-कर्तृसमवायिनी कर्मसमवायिनी चेति। तत्र कर्तृ समवायिनी आस्ते गच्छतीति। कर्मसमवायिनी ओदनं पचति, कुशूलं भिनत्तीति।=क्रिया दो प्रकार की होती है—कर्तृ समवायिनी क्रिया और कर्मसमवायिनी क्रिया । आस्ते गच्छति आदि क्रियाओं को कर्तृ समवायिनी क्रिया कहते हैं। और ओदन को पकाता है, घड़े को फोड़ता है आदि क्रियाओं को कर्मसमवायिनी क्रिया कहते हैं।
देखें क्रिया - 1।