मृत्यु: Difference between revisions
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<p id="2">(2) जीवों के प्राणों का विसर्जन । जीव को अपने मरण का पूर्व बोध नहीं हो पाता, पलभर में वह निष्प्राण हो जाता है । <span class="GRef"> पद्मपुराण 115.55 </span></p> | <p id="2">(2) जीवों के प्राणों का विसर्जन । जीव को अपने मरण का पूर्व बोध नहीं हो पाता, पलभर में वह निष्प्राण हो जाता है । <span class="GRef"> पद्मपुराण 115.55 </span></p> | ||
<p id="3">(3) हरिविक्रम भीलराज का सेवक । <span class="GRef"> महापुराण 75. 478-481 </span></p> | <p id="3">(3) हरिविक्रम भीलराज का सेवक । <span class="GRef"> महापुराण 75. 478-481 </span></p> | ||
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Revision as of 09:56, 6 March 2023
सिद्धांतकोष से
धवला 1/1,1,33/234/2 आयुष: क्षयस्य मरणहेतुत्वात्। = आयुकर्म के क्षय को मरण का कारण माना है।
विस्तार के लिये देखें मरण ।
पुराणकोष से
(1) रावण का सामंत । यह व्याघ्ररथ पर आरूढ़ होकर रावण की ओर से युद्ध करने घर से निकला था । पद्मपुराण 57. 49
(2) जीवों के प्राणों का विसर्जन । जीव को अपने मरण का पूर्व बोध नहीं हो पाता, पलभर में वह निष्प्राण हो जाता है । पद्मपुराण 115.55
(3) हरिविक्रम भीलराज का सेवक । महापुराण 75. 478-481