गोमट्टसार: Difference between revisions
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<p class="HindiText"><p>मन्त्री चामुण्डराय के अर्थ आ.नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती (ई.श. ११ पूर्वार्ध) द्वारा रचित कर्म सिद्धान्त प्ररूपक प्राकृत गाथाबद्ध ग्रन्थ है। यह ग्रन्थ दो भागों में विभक्त है–जीवकाण्ड व कर्मकाण्ड। जीवकाण्ड में जीव का गति आदि २० प्ररूपणाओं द्वारा वर्णन है और कर्मकाण्ड में कर्मों की ८ व १४८ मूलोत्तर प्रकृतियों के बन्ध, उदय, सत्त्व आदि सम्बन्धी वर्णन है। कहा जाता है कि चामुण्डराय जो आ.नेमिचन्द्र के परम भक्त थे, एक दिन जब उनके दर्शनार्थ आये तब वे धवला शास्त्र का स्वाध्याय कर रहे थे। चामुण्डराय को देखते ही उन्होंने शास्त्र बन्द कर दिया। पूछने पर उत्तर दिया कि तुम अभी इस शास्त्र को पढ़ने के अधिकारी नहीं हो। तब उनकी प्रार्थना पर उन्होंने उस शास्त्र के संक्षिप्त सारस्वरूप यह ग्रन्थ रचा था। जीवकाण्ड में २० अधिकार और ७३५ गाथाए̐ हैं तथा कर्मकाण्ड में ८ अधिकार और ९७२ गाथाए̐ हैं। इस ग्रन्थ पर निम्न टीकाए̐ लिखी गयीं–</p> | |||
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<li> अभयनन्दि आचार्य (ई.श. १०-११) कृत टीका। </li> | |||
<li> चामुण्डराय (ई.श.१०-११) कृत कन्नड़ वृत्ति ‘वीर मार्तण्डी।‘ </li> | |||
<li>आ.अभयचन्द्र (ई.१३३३-१३४३) कृत मन्दप्रबोधिनी नामक संस्कृत टीका।</li> | |||
<li> ब्र.केशव वर्णी (ई. १३५९) कृत कर्णाटक वृत्ति।</li> | |||
<li> आ.नेमिचन्द्र नं.५ (ई.श. १६ पूर्वार्ध) कृत जीवतत्त्व प्रबोधिनी नाम की संस्कृत टीका।</li> | |||
<li> पं.हेमचन्द्र (ई.१६४३-१६७०) कृत भाषा वचनिका।</li> | |||
<li> पं.टोडरमल्ल (ई.१७३६) द्वारा रचित भाषा वचनिका। (जै./१/३८१,३८५-३९३)।</li> | |||
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Revision as of 22:16, 24 December 2013
मन्त्री चामुण्डराय के अर्थ आ.नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती (ई.श. ११ पूर्वार्ध) द्वारा रचित कर्म सिद्धान्त प्ररूपक प्राकृत गाथाबद्ध ग्रन्थ है। यह ग्रन्थ दो भागों में विभक्त है–जीवकाण्ड व कर्मकाण्ड। जीवकाण्ड में जीव का गति आदि २० प्ररूपणाओं द्वारा वर्णन है और कर्मकाण्ड में कर्मों की ८ व १४८ मूलोत्तर प्रकृतियों के बन्ध, उदय, सत्त्व आदि सम्बन्धी वर्णन है। कहा जाता है कि चामुण्डराय जो आ.नेमिचन्द्र के परम भक्त थे, एक दिन जब उनके दर्शनार्थ आये तब वे धवला शास्त्र का स्वाध्याय कर रहे थे। चामुण्डराय को देखते ही उन्होंने शास्त्र बन्द कर दिया। पूछने पर उत्तर दिया कि तुम अभी इस शास्त्र को पढ़ने के अधिकारी नहीं हो। तब उनकी प्रार्थना पर उन्होंने उस शास्त्र के संक्षिप्त सारस्वरूप यह ग्रन्थ रचा था। जीवकाण्ड में २० अधिकार और ७३५ गाथाए̐ हैं तथा कर्मकाण्ड में ८ अधिकार और ९७२ गाथाए̐ हैं। इस ग्रन्थ पर निम्न टीकाए̐ लिखी गयीं–
- अभयनन्दि आचार्य (ई.श. १०-११) कृत टीका।
- चामुण्डराय (ई.श.१०-११) कृत कन्नड़ वृत्ति ‘वीर मार्तण्डी।‘
- आ.अभयचन्द्र (ई.१३३३-१३४३) कृत मन्दप्रबोधिनी नामक संस्कृत टीका।
- ब्र.केशव वर्णी (ई. १३५९) कृत कर्णाटक वृत्ति।
- आ.नेमिचन्द्र नं.५ (ई.श. १६ पूर्वार्ध) कृत जीवतत्त्व प्रबोधिनी नाम की संस्कृत टीका।
- पं.हेमचन्द्र (ई.१६४३-१६७०) कृत भाषा वचनिका।
- पं.टोडरमल्ल (ई.१७३६) द्वारा रचित भाषा वचनिका। (जै./१/३८१,३८५-३९३)।