कुड्याश्रित: Difference between revisions
From जैनकोष
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 11: | Line 11: | ||
<li class="HindiText"> भित्ति के आधार से '''कुड्याश्रित'''। </li> | <li class="HindiText"> भित्ति के आधार से '''कुड्याश्रित'''। </li> | ||
ऐसे ये कायोत्सर्ग के दोष हैं </span><br /> | ऐसे ये कायोत्सर्ग के दोष हैं </span><br /> | ||
</ol> | |||
Latest revision as of 09:51, 23 March 2023
भगवती आराधना / विजयोदया टीका/116/279/8 कायोत्सर्गं प्रपन्नः स्थानदोषान् परिहरेत्। के ते इति चेदुच्यते।
- ......
- स्तंभोपाश्रयेण वा कुड्याश्रयेण वा मालावलग्नशिरसा वावस्थानम्, =
- मुनियों को उत्थित कायोत्सर्ग के दोषों का त्याग करना चाहिए। उन दोषों का स्वरूप इस प्रकार है–
- .......
- भित्ति के आधार से कुड्याश्रित। ऐसे ये कायोत्सर्ग के दोष हैं
कायोत्सर्ग का अतिचार—देखें व्युत्सर्ग - 1।