कुसंगति: Difference between revisions
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<span class="HindiText"> देखें [[ संगति ]]। | <p> <span class="GRef"> भगवती आराधना/344-348 </span><span class="PrakritText">दुज्जणसंसग्गोए पजहदि णियगं गुणं खु सजणो वि। सीयलभावं उदयं जह पजहदि अग्गिजोएण।344। सुजणो वि होइ लहुओ दुज्जणसंमेलणाए दोसेण। माला वि मोल्लगरुया होदि लहू मडयसंसिट्ठा।345। दुज्जणसंसग्गीए संकिज्जदि संजदो वि दोसेण। पाणागारे दुद्धं पियंतओ बंभणो चेव।346। अदिसंजदो वि दुज्जणकएण दोसेण पाउणइ दोसं। जह घूगकए दोसे हंसो य हओ अपावो वि।348।</span> =<span class="HindiText"> सज्जन मनुष्य भी दुर्जन के संग से अपना उज्ज्वल गुण छोड़ देता है। अग्नि के सहवास से ठंडा भी जल अपना ठंडापन छोड़कर क्या गरम नहीं हो जाता ? अर्थात् हो जाता है।344। दुर्जन के दोषों का संसर्ग करने से सज्जन भी नीच होता है, बहुत कीमत की पुष्पमाला भी प्रेत के (शव के) संसर्ग से कौड़ी की कीमत की होती है।346। दुर्जन के संसर्ग से दोष रहित भी मुनि लोकों के द्वारा दोषयुक्त गिना जाता है। मदिरागृह में जाकर कोई ब्राह्मण दूध पीवे तो भी मद्यपी है ऐसा लोक मानते हैं।349। महान् तपस्वी भी दुर्जनों के दोष से अनर्थ में पड़ते हैं अर्थात् दोष तो दुर्जन करता है परंतु फल सज्जन को भोगना पड़ता है। जैसे उल्लू के दोष से निष्पाप हंस पक्षी मारा गया।348।</span></p> | ||
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भगवती आराधना/344-348 दुज्जणसंसग्गोए पजहदि णियगं गुणं खु सजणो वि। सीयलभावं उदयं जह पजहदि अग्गिजोएण।344। सुजणो वि होइ लहुओ दुज्जणसंमेलणाए दोसेण। माला वि मोल्लगरुया होदि लहू मडयसंसिट्ठा।345। दुज्जणसंसग्गीए संकिज्जदि संजदो वि दोसेण। पाणागारे दुद्धं पियंतओ बंभणो चेव।346। अदिसंजदो वि दुज्जणकएण दोसेण पाउणइ दोसं। जह घूगकए दोसे हंसो य हओ अपावो वि।348। = सज्जन मनुष्य भी दुर्जन के संग से अपना उज्ज्वल गुण छोड़ देता है। अग्नि के सहवास से ठंडा भी जल अपना ठंडापन छोड़कर क्या गरम नहीं हो जाता ? अर्थात् हो जाता है।344। दुर्जन के दोषों का संसर्ग करने से सज्जन भी नीच होता है, बहुत कीमत की पुष्पमाला भी प्रेत के (शव के) संसर्ग से कौड़ी की कीमत की होती है।346। दुर्जन के संसर्ग से दोष रहित भी मुनि लोकों के द्वारा दोषयुक्त गिना जाता है। मदिरागृह में जाकर कोई ब्राह्मण दूध पीवे तो भी मद्यपी है ऐसा लोक मानते हैं।349। महान् तपस्वी भी दुर्जनों के दोष से अनर्थ में पड़ते हैं अर्थात् दोष तो दुर्जन करता है परंतु फल सज्जन को भोगना पड़ता है। जैसे उल्लू के दोष से निष्पाप हंस पक्षी मारा गया।348।
विस्तार के लिये देखें संगति ।