केवलशान: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<span class="HindiText"> पृथक्त्व वित्तर्क और एकत्व वितर्क शुक्ल | <span class="HindiText"> पृथक्त्व वित्तर्क और एकत्व वितर्क शुक्ल ध्यानों द्वारा मोहनीय, ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अंतराय के भेद से चतुर्दिक घातियाकर्मों के क्षय के पश्चात् उत्पन्न समस्त द्रव्य, उनके पर्याय तथा लोक-अलोक का ज्ञान । यह अंतर और बाहर मल के नष्ट हो जाने पर उत्पन्न लोकालोक की प्रकाशिनी परम ज्योति है । <span class="GRef"> महापुराण 21. 186, 33.132, 38.298, 36.185, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 4.22, 87. 15, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 9.210, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 1.8 </span></span><br> | ||
<span class="HindiText"> यह पांचों ज्ञानों में अंतिम ज्ञान है और साक्षात् मोक्ष का कारण है । यह तीर्थंकरों का चतुर्थ कल्याणक है । <span class="GRef"> महापुराण 57.52-53 </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 3.26, 10.154-156 </span></span> | |||
<noinclude> | <noinclude> | ||
Line 9: | Line 10: | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: क]] | [[Category: क]] | ||
[[Category: करणानुयोग]] |
Revision as of 17:52, 7 April 2023
पृथक्त्व वित्तर्क और एकत्व वितर्क शुक्ल ध्यानों द्वारा मोहनीय, ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अंतराय के भेद से चतुर्दिक घातियाकर्मों के क्षय के पश्चात् उत्पन्न समस्त द्रव्य, उनके पर्याय तथा लोक-अलोक का ज्ञान । यह अंतर और बाहर मल के नष्ट हो जाने पर उत्पन्न लोकालोक की प्रकाशिनी परम ज्योति है । महापुराण 21. 186, 33.132, 38.298, 36.185, पद्मपुराण 4.22, 87. 15, हरिवंशपुराण 9.210, वीरवर्द्धमान चरित्र 1.8
यह पांचों ज्ञानों में अंतिम ज्ञान है और साक्षात् मोक्ष का कारण है । यह तीर्थंकरों का चतुर्थ कल्याणक है । महापुराण 57.52-53 हरिवंशपुराण 3.26, 10.154-156