क्षायोपशमिक लब्धि: Difference between revisions
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<span class="HindiText"> देखें [[ लब्धि#2 | लब्धि - 2]]। | <span class="GRef"> धवला 7/2,1,45/87/3 </span><span class="PrakritGatha">णाणस्स विणासो खओ णाम, तस्स उवसमो एगदेसक्खो, तस्स खओवसमसण्णा। तत्थ णाणमण्णाणं वा उप्पज्जदि त्ति खओवसमिया लद्धी वुच्चदे।<br /> | ||
<span class="GRef"> धवला 7/2,1,71/108/7 </span><span class="PrakritText">उदयमागदाणमइदहरदेसघादित्तणेण उवसंताणं जेण खओवसमसण्णा अत्थि तेण तत्थुप्पण्णजीवपरिणामो खओवसमलद्धीसण्णिदो।</span> = | |||
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<li> <span class="HindiText">ज्ञान के विनाश का नाम क्षय है। उस क्षय का उपशम एकदेश क्षय। इस प्रकार ज्ञान के एकदेशीय क्षय की क्षयोपशम संज्ञा मानी जा सकती है। ऐसा क्षयोपशम होने पर जो ज्ञान या अज्ञान उत्पन्न होता है उसी को क्षायोपशमिक लब्धि कहते हैं। </span></li> | |||
<li><span class="HindiText"> उदय में आये हुए तथा अत्यंत अल्प देशघातित्व के रूप से उपशांत हुए सम्यक्त्व मोहनीय प्रकृति के देशघाती स्पर्धकों का चूँकि क्षयोपशम नाम दिया गया है, इसलिए उस क्षयोपशम से उत्पन्न जीव परिणाम को क्षयोपशमलब्धि कहते हैं।</span> </li></ol><br /> | |||
<span class="GRef"> धवला 6/1,9-8,3/204/3 </span><span class="PrakritText">पुव्वसंचिदकम्ममलपडलस्स अणुभागफद्दयाणि जदा विसोहीए पडिसमयमणंतगुणहीणाणि होदूणुदीरिज्जंति तदा खओवसमलद्धी होदी।</span> = <span class="HindiText">पूर्वसंचित कर्मों के मलरूप पटल के अनुभाग स्पर्धक जिस समय विशुद्धि के द्वारा प्रतिसमय अनंतगुण हीन होते हुए उदीरणा को प्राप्त किये जाते हैं उस समय क्षयोपशमलब्धि होती है। (<span class="GRef"> लब्धिसार/मूल/4/43 </span>) <br /> | |||
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Revision as of 10:15, 14 April 2023
धवला 7/2,1,45/87/3 णाणस्स विणासो खओ णाम, तस्स उवसमो एगदेसक्खो, तस्स खओवसमसण्णा। तत्थ णाणमण्णाणं वा उप्पज्जदि त्ति खओवसमिया लद्धी वुच्चदे।
धवला 7/2,1,71/108/7 उदयमागदाणमइदहरदेसघादित्तणेण उवसंताणं जेण खओवसमसण्णा अत्थि तेण तत्थुप्पण्णजीवपरिणामो खओवसमलद्धीसण्णिदो। =
- ज्ञान के विनाश का नाम क्षय है। उस क्षय का उपशम एकदेश क्षय। इस प्रकार ज्ञान के एकदेशीय क्षय की क्षयोपशम संज्ञा मानी जा सकती है। ऐसा क्षयोपशम होने पर जो ज्ञान या अज्ञान उत्पन्न होता है उसी को क्षायोपशमिक लब्धि कहते हैं।
- उदय में आये हुए तथा अत्यंत अल्प देशघातित्व के रूप से उपशांत हुए सम्यक्त्व मोहनीय प्रकृति के देशघाती स्पर्धकों का चूँकि क्षयोपशम नाम दिया गया है, इसलिए उस क्षयोपशम से उत्पन्न जीव परिणाम को क्षयोपशमलब्धि कहते हैं।
धवला 6/1,9-8,3/204/3 पुव्वसंचिदकम्ममलपडलस्स अणुभागफद्दयाणि जदा विसोहीए पडिसमयमणंतगुणहीणाणि होदूणुदीरिज्जंति तदा खओवसमलद्धी होदी। = पूर्वसंचित कर्मों के मलरूप पटल के अनुभाग स्पर्धक जिस समय विशुद्धि के द्वारा प्रतिसमय अनंतगुण हीन होते हुए उदीरणा को प्राप्त किये जाते हैं उस समय क्षयोपशमलब्धि होती है। ( लब्धिसार/मूल/4/43 )
देखें लब्धि - 2.2।