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| {{TirthankarInfo
| | <div class="HindiText"> <p id="1">(1) अवसर्पिणी काल के दु:षमा-सुषमा नामक चतुर्थ काल में उत्पन्न शलाकापुरुष, अठारहवें तीर्थंकर तथा सातवें चक्रवर्ती [[ अरनाथ ]]। </p> |
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| | Tirthankar-Number = 18
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| | Tirthankar-Name = अरहनाथ
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| | PurvManushyaBhav = धनपति
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| | PurvManushyaBhavTitle = मण्डलेश्वर
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| | PurvManushyaBhavFather = घनरव
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| | PurvManushyaBhavCity = जम्बू वि.क्षेमपुरी
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| | PurvDevBhav = जयन्त
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| | BirthCity = हस्तनागपुर
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| | Chihn = मत्स्य
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| | Yaksha = कुबेर
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| | Yakshini = जया
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| | Father = सुदर्शन
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| | Mother = मित्रसेना
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| | Vansh = कुरु
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| | GarbhDate = फाल्गुन कृष्ण 3
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| | Garbh-Nakshatra = रेवती
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| | Garbh-Period = अन्तिम रात्रि
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| | BirthDate = मार्गशीर्ष शुक्ल 14
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| | Birth-Nakshatra = रोहिणी
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| | Birth-Yog =
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| | Height = 30 धनुष
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| | Color = स्वर्ण
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| | VairagyaReason = मेघ
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| | Diksha-Date = मार्गशीर्ष शुक्ल 10
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| | Diksha-Nakshatra = रेवती
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| | Diksha-Period = अपराह्न
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| | Diksha-Upvaas = तृतीय भक्त
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| | Diksha-Van = सहेतुक
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| | Diksha-Vruksha = आम्र
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| | Diksha-Sah-Dikshit = 1000
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| | Keval-Date = कार्तिक शुक्ल 12
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| | Keval-Nakshatra = रेवती
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| | Keval-Period = अपराह्न
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| | Keval-Place = हस्तनागपुर
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| | Keval-Forest = सहेतुक
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| | Keval-Vruksha = आम्र
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| | Samavasharan-Length = 3 1/2 योजन
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| | Yog-Nivrutti-Period = 1 मास पूर्व
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| | Nirvaan-Date = चैत्र कृष्ण 15
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| | Nirvaan-Nakshatra = रोहिणी
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| | Nirvaan-Period = प्रात:
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| | Nirvaan-Place = सम्मेद
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| | Sah-Mukt = 1000
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| | Purvdhaari = 610
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| | Shikshak = 35835
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| | Avadhigyaani = 2800
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| | Kevali = 2800
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| | Vikriyadhaari = 4300
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| | Manahparyaygyaani = 2055
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| | Vaadi = 1600
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| | All-Rishi-Count = 50000
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| | Gandhar-Count = 30
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| | Ganadhar-Main = कुम्भ
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| | Aaryika-Count = 60000
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| | Aaryika-Main = कुन्थुसेना
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| | Shraavak-Count = 100000
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| | Shraavika-Count = 300000
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| | Life = 84000 वर्ष
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| | Kumaar-Period = 21000 वर्ष
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| | Raja-Vishesh = चक्रवर्ती
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| | Rajya-Duration = 21000+21000
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| | Chhadmath-Duration = 16 वर्ष
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| | Kevali-Kaal = 20984 वर्ष
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| | Janm-Gap = 1/4 पल्य+9999989000 वर्ष
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| | Keval-Gap = 9999966084 वर्ष 6 दिन
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| | Nirvaan-Gap = 1000 को.वर्ष
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| | Tirth-Kaal = 9999966100 वर्ष
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| | Tirth-Gap = ❌
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| | Chakravarti = स्वयं, सुभौम
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| | Baldev = नन्दी
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| | Narayan = पुण्डरीक
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| | Pratinarayan = बलि
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| | Rudra = ❌
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| | Shrota-Main = सुभौम
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| <div class="HindiText"> <p id="1">(1) अवसर्पिणी काल के दु:षमा-सुषमा नामक चतुर्थ काल में उत्पन्न शलाकापुरुष, अठारहवें तीर्थंकर तथा सातवें चक्रवर्ती । ये सोलह स्वप्नपूर्वक फाल्गुन शुक्ला तृतीया के दिन रेवती नक्षत्र में रात्रि के पिछले प्रहर में भरतक्षेत्र में स्थित कुरुजांगल देश के हस्तिनापुर नगर में सोमवंशी, काश्यपगोत्री राजा सुदर्शन की रानी मित्रसेना के गर्भ में आये तथा मार्गशीर्ष शुक्ला चतुर्दशी के दिन पुष्य नक्षत्र में मति, श्रुत और अवधिज्ञान सहित जन्मे थे । इनकी आयु चौरासी हजार वर्ष थी, शरीर तीस धनुष ऊँचा था और कांति स्वर्ण के समान थी । कुमारावस्था के इक्कीस हजार वर्ष बीत जाने पर इन्हें मंडलेश्वर के योग्य राजपद प्राप्त हुआ था और जब इतना ही काल और बीत गया तब ये चक्रवर्ती हुए । इनकी छियानवें हजार रानियाँ थी । अठारह कोटि घोड़े, चौरासी लाख हाथी और रथ, निन्यानवें हजार द्रोण अड़तालीस हजार पत्तन, सोलह हजार खेट, छियानवें कोटि ग्राम आदि इनका अपार वैभव था । शरद्-ऋतु के मेघों का अकस्मात् विलय देखकर इन्हें आत्मबोध हुआ । इन्होंने अपने पुत्र अरविंद को राज्य दे दिया और वैजयंती नाम की शिविका में बैठकर ये सहेतुक वन में गये । वहाँ षष्टोपवास पूर्वक मंगसिर शुक्ला दशमी के दिन रेवती नक्षत्र में संध्या के समय एक हजार राजाओं के साथ ये दीक्षित हुए । दीक्षित होते ही इन्हें मन:पर्ययज्ञान प्राप्त हुआ । इसके पश्चात् चक्रपुर नगर में आयोजित नृप के यहाँ इन्होंने आहार लिया । सोलह वर्ष छद्मस्थ अवस्था में रहने के बाद दीक्षावन में कार्तिक शुक्ल द्वादशी के दिन रेवती नक्षत्र में सायंकाल के समय आद्य वृक्ष के नीचे ये केवली हुए । इनके संघ में कुंभार्य आदि तीस गणधर, पचास हजार मुनि, साठ हजार आर्यिकाएँ, एक लाख साठ हजार श्रावक और तीन लाख श्राविकाएँ थीं । एक मास की आयु शेष रहने पर ये सम्मेदाचल आये । यहाँ प्रतिमायोग धारण कर एक हजार मुनियों के साथ चैत्र कृष्णा अमावस्या के दिन रेवती नक्षत्र में रात्रि के पूर्व-भाग में इन्होंने मोक्ष प्राप्त किया । इन्होंने क्षेमपुर नगर के राजा धनपति की पर्याय में तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया था । इसके बाद ये अहमिंद्र हुए और वहाँ से चयकर राजा सुदर्शन के पुत्र हुए । <span class="GRef"> महापुराण 2.132-134, 65.14-50, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 5.215, 223, 20.14-121, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 1.20, 45.22, 60.154-190, 341-349, 507, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 7.2-35, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 18.101-109 </span></p> | |
| <p id="2">(2) भविष्यत् काल के बारहवें तीर्थंकर । <span class="GRef"> महापुराण 76.479, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60.560 </span></p> | | <p id="2">(2) भविष्यत् काल के बारहवें तीर्थंकर । <span class="GRef"> महापुराण 76.479, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60.560 </span></p> |
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