अरति: Difference between revisions
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<span class="GRef"> धवला 12/4,2,7,100/57/2 </span><span class="PrakritText">अरदीए विणा सोगाणुप्पत्तीए।</span>=<span class="HindiText">माया, लोभपूर्वक उपलब्ध है। वह (मान) क्रोधपूर्वक देखा जाता है। '''अरति''' के बिना शोक नहीं उत्पन्न होता।<br /> | <span class="GRef"> धवला 12/4,2,7,100/57/2 </span><span class="PrakritText">अरदीए विणा सोगाणुप्पत्तीए।</span>=<span class="HindiText">माया, लोभपूर्वक उपलब्ध है। वह (मान) क्रोधपूर्वक देखा जाता है। '''अरति''' के बिना शोक नहीं उत्पन्न होता।<br /> | ||
<span class="GRef"> कषायपाहुड़/1/ चूर्णसूत्र व टीका/1-21/335-336/365</span><span class="PrakritText"> णेगमसंगहाणं कोहो दोसो, माणो दोसो, माया पेज्जं, लोहो पेज्जं। (चूर्णसूत्र)।</span><p class="SanskritText">....कोहो दोसो; अंगसंतापकंप.... पितृमात्रादिप्राणिमारणहेतुत्वात्, सकलानर्थनिबंधनत्वात्। माणो दोसो क्रोधपृष्ठभावित्वात्, क्रोधोक्ताशेषदोषनिबंधनत्वात्। माया पेज्जं प्रेयोवस्त्वालंबनत्वात्, स्वनिष्पत्त्युत्तरकाले मनस: संतोषोत्पादकत्वात्। लोहो पेज्जं आह्लादनहेतुत्वात् (335)। क्रोध-मान-माया-लोभा: दोष: आस्रवत्वादिति चेत्; सत्यमेतत्; किंत्वत्र आह्लादनानाह्लादनहेतुमात्रं विवक्षितं तेन नायं दोष:। प्रेयसि प्रविष्टदोषत्वाद्वा माया-लोभौ प्रेयान्सौ। अरइ-सोय-भय-दुगुंछाओ दोसो; कोहोव्व असुहकारणत्तादो। हस्स-रइ-इत्थि-पुरिस-णवुंसयसेया पेज्जं लोहो व्व रायकारणत्तादो (336)।</ | <span class="GRef"> कषायपाहुड़/1/ चूर्णसूत्र व टीका/1-21/335-336/365</span><span class="PrakritText"> णेगमसंगहाणं कोहो दोसो, माणो दोसो, माया पेज्जं, लोहो पेज्जं। (चूर्णसूत्र)।</span><p class="SanskritText">....कोहो दोसो; अंगसंतापकंप.... पितृमात्रादिप्राणिमारणहेतुत्वात्, सकलानर्थनिबंधनत्वात्। माणो दोसो क्रोधपृष्ठभावित्वात्, क्रोधोक्ताशेषदोषनिबंधनत्वात्। माया पेज्जं प्रेयोवस्त्वालंबनत्वात्, स्वनिष्पत्त्युत्तरकाले मनस: संतोषोत्पादकत्वात्। लोहो पेज्जं आह्लादनहेतुत्वात् (335)। क्रोध-मान-माया-लोभा: दोष: आस्रवत्वादिति चेत्; सत्यमेतत्; किंत्वत्र आह्लादनानाह्लादनहेतुमात्रं विवक्षितं तेन नायं दोष:। प्रेयसि प्रविष्टदोषत्वाद्वा माया-लोभौ प्रेयान्सौ। अरइ-सोय-भय-दुगुंछाओ दोसो; कोहोव्व असुहकारणत्तादो। हस्स-रइ-इत्थि-पुरिस-णवुंसयसेया पेज्जं लोहो व्व रायकारणत्तादो (336)।</p><span class="HindiText">= नैगम और संग्रह नय की अपेक्षा क्रोध दोष है, मान दोष है, माया पेज्ज है और लोभ पेज्ज है। (सूत्र) क्रोध दोष है; क्योंकि क्रोध करने से शरीर में संताप होता है, शरीर काँपने लगता है....आदि....माता-पिता तक को मार डालता है और क्रोध सकल अनर्थों का कारण है। मान दोष है; क्योंकि वह क्रोध के अनंतर उत्पन्न होता है और क्रोध के विषय में कहे गये समस्त दोषों का कारण है। माया पेज्ज है; क्योंकि, उसका आलंबन प्रिय वस्तु है, तथा अपनी निष्पत्ति के अनंतर संतोष उत्पन्न करती है। लोभ पेज्ज है; क्योंकि वह प्रसन्नता का कारण है। प्रश्न—क्रोध, मान, माया और लोभ ये चारों दोष हैं, क्योंकि वे स्वयं आस्रव रूप हैं या आस्रव के कारण हैं ? उत्तर—यह कहना ठीक है, किंतु यहाँ पर, कौन कषाय आनंद की कारण है और कौन आनंद की कारण नहीं है इतने मात्र की विवक्षा है, इसलिए यह कोई दोष नहीं है। अथवा प्रेम में दोषपना पाया ही जाता है, अत: माया और लोभ प्रेम अर्थात् पेज्ज है। '''अरति''', शोक, भय और जुगुप्सा दोष रूप हैं; क्योंकि ये सब क्रोध के समान अशुभ के कारण हैं। हास्य, रति, स्त्रीवेद, पुरूषवेद और नपुंसकवेद पेज्जरूप हैं, क्योंकि ये सब लोभ के समान राग के कारण हैं।</span> <br /> | ||
<p class="HindiText"> देखें [[ कषाय#4 | कषाय - 4]]।</p> | <p class="HindiText"> देखें [[ कषाय#4 | कषाय - 4]]।</p> |
Revision as of 15:36, 1 May 2023
सिद्धांतकोष से
अरति कषाय द्वेष है
धवला 12/4,2,7,100/57/2 अरदीए विणा सोगाणुप्पत्तीए।=माया, लोभपूर्वक उपलब्ध है। वह (मान) क्रोधपूर्वक देखा जाता है। अरति के बिना शोक नहीं उत्पन्न होता।
कषायपाहुड़/1/ चूर्णसूत्र व टीका/1-21/335-336/365 णेगमसंगहाणं कोहो दोसो, माणो दोसो, माया पेज्जं, लोहो पेज्जं। (चूर्णसूत्र)।
....कोहो दोसो; अंगसंतापकंप.... पितृमात्रादिप्राणिमारणहेतुत्वात्, सकलानर्थनिबंधनत्वात्। माणो दोसो क्रोधपृष्ठभावित्वात्, क्रोधोक्ताशेषदोषनिबंधनत्वात्। माया पेज्जं प्रेयोवस्त्वालंबनत्वात्, स्वनिष्पत्त्युत्तरकाले मनस: संतोषोत्पादकत्वात्। लोहो पेज्जं आह्लादनहेतुत्वात् (335)। क्रोध-मान-माया-लोभा: दोष: आस्रवत्वादिति चेत्; सत्यमेतत्; किंत्वत्र आह्लादनानाह्लादनहेतुमात्रं विवक्षितं तेन नायं दोष:। प्रेयसि प्रविष्टदोषत्वाद्वा माया-लोभौ प्रेयान्सौ। अरइ-सोय-भय-दुगुंछाओ दोसो; कोहोव्व असुहकारणत्तादो। हस्स-रइ-इत्थि-पुरिस-णवुंसयसेया पेज्जं लोहो व्व रायकारणत्तादो (336)।
= नैगम और संग्रह नय की अपेक्षा क्रोध दोष है, मान दोष है, माया पेज्ज है और लोभ पेज्ज है। (सूत्र) क्रोध दोष है; क्योंकि क्रोध करने से शरीर में संताप होता है, शरीर काँपने लगता है....आदि....माता-पिता तक को मार डालता है और क्रोध सकल अनर्थों का कारण है। मान दोष है; क्योंकि वह क्रोध के अनंतर उत्पन्न होता है और क्रोध के विषय में कहे गये समस्त दोषों का कारण है। माया पेज्ज है; क्योंकि, उसका आलंबन प्रिय वस्तु है, तथा अपनी निष्पत्ति के अनंतर संतोष उत्पन्न करती है। लोभ पेज्ज है; क्योंकि वह प्रसन्नता का कारण है। प्रश्न—क्रोध, मान, माया और लोभ ये चारों दोष हैं, क्योंकि वे स्वयं आस्रव रूप हैं या आस्रव के कारण हैं ? उत्तर—यह कहना ठीक है, किंतु यहाँ पर, कौन कषाय आनंद की कारण है और कौन आनंद की कारण नहीं है इतने मात्र की विवक्षा है, इसलिए यह कोई दोष नहीं है। अथवा प्रेम में दोषपना पाया ही जाता है, अत: माया और लोभ प्रेम अर्थात् पेज्ज है। अरति, शोक, भय और जुगुप्सा दोष रूप हैं; क्योंकि ये सब क्रोध के समान अशुभ के कारण हैं। हास्य, रति, स्त्रीवेद, पुरूषवेद और नपुंसकवेद पेज्जरूप हैं, क्योंकि ये सब लोभ के समान राग के कारण हैं।
देखें कषाय - 4।
पुराणकोष से
(1) इस नाम का एक परीषह― रागद्वेष के कारणों के उपस्थित होने पर भी किसी से राग-द्वेष नहीं करना । महापुराण 36.118
(2) सत्यप्रवाद नामक छठे पूर्व में वर्णित बारह प्रकार की भाषाओं में द्वेष उत्पन्न करने वाली एक भाषा । हरिवंशपुराण 10.91-94