चंद्रप्रज्ञप्ति: Difference between revisions
From जैनकोष
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 3: | Line 3: | ||
<ol class="HindiText"> | <ol class="HindiText"> | ||
<li name="1" id="1">अंग श्रुतज्ञान का एक भेद–देखें [[ शब्द_लिंगज_श्रुतज्ञान_विशेष#III.1.3 | श्रुतज्ञान - III.1.3]]। </li> | <li name="1" id="1">अंग श्रुतज्ञान का एक भेद–देखें [[ शब्द_लिंगज_श्रुतज्ञान_विशेष#III.1.3 | श्रुतज्ञान - III.1.3]]। </li> | ||
<li name="2" id="2"> सूर्य प्रज्ञप्ति की नकल मात्र एक श्वेतांबर ग्रंथ। ( | <li name="2" id="2"> सूर्य प्रज्ञप्ति की नकल मात्र एक श्वेतांबर ग्रंथ। (<span class="GRef">जैन साहित्य इतिहास/2/56,60</span>) </li> | ||
<li name="3" id="3"> | <li name="3" id="3">आचार्यअमितगति (ई.993-1016) द्वारा रचित संस्कृत ग्रंथ। </li> | ||
</ol> | </ol> | ||
Line 28: | Line 28: | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: च]] | [[Category: च]] | ||
[[Category: करणानुयोग]] |
Revision as of 12:56, 11 May 2023
सिद्धांतकोष से
- अंग श्रुतज्ञान का एक भेद–देखें श्रुतज्ञान - III.1.3।
- सूर्य प्रज्ञप्ति की नकल मात्र एक श्वेतांबर ग्रंथ। (जैन साहित्य इतिहास/2/56,60)
- आचार्यअमितगति (ई.993-1016) द्वारा रचित संस्कृत ग्रंथ।
पुराणकोष से
दृष्टिवाद अग के पाँच भेदों मे से परिकर्म श्रुत का प्रथम भेद । इसमें छत्तीस लाख पाँच हजार पदों के द्वारा चंद्रमा की भोगसंपदा का वर्णन है । हरिवंशपुराण 10.61-63