मूढता: Difference between revisions
From जैनकोष
(Imported from text file) |
Jagrti jain (talk | contribs) mNo edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<div class="HindiText"> <p> तत्त्वों के यथार्थ ज्ञान में बाधक कुदृष्टि । यह तीन प्रकार को होती है― | <div class="HindiText"> <p> तत्त्वों के यथार्थ ज्ञान में बाधक कुदृष्टि । यह तीन प्रकार को होती है― दैवमूढ़ता, लोकमूढ़ता और पाखंडिमूढ़ता । इन मूढ़ताओं से आविष्ट प्राणी तत्त्वों को देखता हुआ भी नहीं देखता है । इनके त्याग से विशुद्ध सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होती है । <span class="GRef"> महापुराण 9.122, 128, 140 </span></p> | ||
</div> | </div> | ||
Line 5: | Line 5: | ||
[[ मूकंडू | पूर्व पृष्ठ ]] | [[ मूकंडू | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[ | [[ मूढ़ता | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | </noinclude> | ||
[[Category: पुराण-कोष]] | [[Category: पुराण-कोष]] | ||
[[Category: म]] | [[Category: म]] | ||
[[Category: चरणानुयोग]] |
Revision as of 15:08, 14 June 2023
तत्त्वों के यथार्थ ज्ञान में बाधक कुदृष्टि । यह तीन प्रकार को होती है― दैवमूढ़ता, लोकमूढ़ता और पाखंडिमूढ़ता । इन मूढ़ताओं से आविष्ट प्राणी तत्त्वों को देखता हुआ भी नहीं देखता है । इनके त्याग से विशुद्ध सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होती है । महापुराण 9.122, 128, 140