जितमोह: Difference between revisions
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(स.सा./मू./३२) <span class="PrakritGatha">जो मोहं तु जिणत्ता णाणसहावाधियं मुणइ आदं। तं जिदमोहं साहू परमट्ठवियाणया विंति।</span> =<span class="HindiText">जो मुनि मोह को जीतकर अपने आत्मा को ज्ञानस्वभाव के द्वारा अन्य द्रव्यभावों से अधिक जानता है, उस मुनि को परमार्थ के जानने वाले जितमोह कहते हैं। </span> | |||
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Revision as of 15:16, 25 December 2013
(स.सा./मू./३२) जो मोहं तु जिणत्ता णाणसहावाधियं मुणइ आदं। तं जिदमोहं साहू परमट्ठवियाणया विंति। =जो मुनि मोह को जीतकर अपने आत्मा को ज्ञानस्वभाव के द्वारा अन्य द्रव्यभावों से अधिक जानता है, उस मुनि को परमार्थ के जानने वाले जितमोह कहते हैं।