पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 9 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी: Difference between revisions
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<p>अब सत्ता और द्रव्य में अभिन्नता की प्रसिद्धि करते हैं --</p> | <p>अब सत्ता और द्रव्य में अभिन्नता की प्रसिद्धि करते हैं --</p> | ||
<p><span class=" | <p><span class="SansWord">[दवियदि]</span> द्रवता है। द्रवता है का क्या अर्थ है? <span class="SansWord">[गच्छदि]</span> उसका जाता है, प्राप्त होता है, ऐसा अर्थ है। कहाँ प्राप्त होता है? वर्तमान काल में प्राप्त होता है, भविष्यकाल में प्राप्त करेगा और भूतकाल में प्राप्त करता था। किन्हें प्राप्त करता है? <span class="SansWord">[ताइं ताइं सब्भावपज्जयाइं जं]</span> उन-उन सद्भाव-स्वरूप अपनी पर्यायों को कर्ता-रूप जो प्राप्त करता है <span class="SansWord">[दवियं ते भण्णंति हि]</span> उसे स्पष्टतया सर्वज्ञ, द्रव्य कहते हैं। अथवा जो स्वभाव पर्यायों को द्रवता है, विभाव पर्यायों को प्राप्त करता है वह द्रव्य है । इसप्रकार का द्रव्य क्या सत्ता से भिन्न होगा? (इसके उत्तर में आचार्य कहते हैं) -- ऐसा नहीं है । <span class="SansWord">[अणण्णभूदं तु सत्तादो]</span> अनन्यभूत, अभिन्न है। किससे अभिन्न है? निश्चयनय से सत्ता से अभिन्न है; क्योंकि सत्ता, लक्षण, प्रयोजन आदि का भेद होने पर भी निश्चयनय से सत्ता से द्रव्य अभिन्न है; इसीलिए पूर्व गाथा में जो सर्व पदार्थ स्थितत्व, एक पदार्थ स्थितत्व; विश्वरूपत्व, एकरूपत्व; अनन्त पर्यायत्व, एक पर्यायत्व; त्रिलक्षणत्व, अत्रिलक्षणत्व और एकरूपत्व, अनेक रूपत्व सत्ता के लक्षण कहे थे; वे सभी लक्षण सत्ता से अभिन्न होने के कारण द्रव्य के ही जानना चाहिए -- यह सूत्रार्थ है ॥९॥</p> | ||
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<p>इसप्रकार दूसरे स्थल में सत्ता-द्रव्य में अभेद के और द्रव्य शब्द की व्युत्पत्ति के कथन-रूप से गाथा पूर्ण हुई ।</p> | <p>इसप्रकार दूसरे स्थल में सत्ता-द्रव्य में अभेद के और द्रव्य शब्द की व्युत्पत्ति के कथन-रूप से गाथा पूर्ण हुई ।</p> | ||
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Latest revision as of 13:16, 30 June 2023
अब सत्ता और द्रव्य में अभिन्नता की प्रसिद्धि करते हैं --
[दवियदि] द्रवता है। द्रवता है का क्या अर्थ है? [गच्छदि] उसका जाता है, प्राप्त होता है, ऐसा अर्थ है। कहाँ प्राप्त होता है? वर्तमान काल में प्राप्त होता है, भविष्यकाल में प्राप्त करेगा और भूतकाल में प्राप्त करता था। किन्हें प्राप्त करता है? [ताइं ताइं सब्भावपज्जयाइं जं] उन-उन सद्भाव-स्वरूप अपनी पर्यायों को कर्ता-रूप जो प्राप्त करता है [दवियं ते भण्णंति हि] उसे स्पष्टतया सर्वज्ञ, द्रव्य कहते हैं। अथवा जो स्वभाव पर्यायों को द्रवता है, विभाव पर्यायों को प्राप्त करता है वह द्रव्य है । इसप्रकार का द्रव्य क्या सत्ता से भिन्न होगा? (इसके उत्तर में आचार्य कहते हैं) -- ऐसा नहीं है । [अणण्णभूदं तु सत्तादो] अनन्यभूत, अभिन्न है। किससे अभिन्न है? निश्चयनय से सत्ता से अभिन्न है; क्योंकि सत्ता, लक्षण, प्रयोजन आदि का भेद होने पर भी निश्चयनय से सत्ता से द्रव्य अभिन्न है; इसीलिए पूर्व गाथा में जो सर्व पदार्थ स्थितत्व, एक पदार्थ स्थितत्व; विश्वरूपत्व, एकरूपत्व; अनन्त पर्यायत्व, एक पर्यायत्व; त्रिलक्षणत्व, अत्रिलक्षणत्व और एकरूपत्व, अनेक रूपत्व सत्ता के लक्षण कहे थे; वे सभी लक्षण सत्ता से अभिन्न होने के कारण द्रव्य के ही जानना चाहिए -- यह सूत्रार्थ है ॥९॥
इसप्रकार दूसरे स्थल में सत्ता-द्रव्य में अभेद के और द्रव्य शब्द की व्युत्पत्ति के कथन-रूप से गाथा पूर्ण हुई ।