पंचास्तिकाय संग्रह-सूत्र - गाथा 40 - तात्पर्य-वृत्ति: Difference between revisions
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Latest revision as of 13:26, 30 June 2023
आभिणिसुदोधिमणकेवलाणि णाणाणि पंचभेयाणि । (40)
कुमदिसूदविभंगाणि य तिण्णि वि णाणेहिं संजुत्ते ॥41॥
अर्थ:
आभिनिबोधिक (मतिज्ञान), श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मन:पर्ययज्ञान और केवलज्ञान-ये ज्ञान के पाँच भेद हैं; तथा कुमति, कुश्रुत, विभंग-ये तीन (अज्ञान) भी ज्ञान के साथ संयुक्त हैं ।
तात्पर्य-वृत्ति हिंदी :
अब ज्ञानोपयोग के भेदों के नाम प्रतिपादित करते हैं --
आभिनिबोधिक (मति-ज्ञान), श्रुत-ज्ञान, अवधि-ज्ञान, मन:पर्यय-ज्ञान और केवल-ज्ञान -- ये ज्ञान के पाँच भेद हैं तथा कुमति-ज्ञान, कुश्रुत-ज्ञान, विभंग-ज्ञान -- ये तीन मिथ्याज्ञान हैं । यहाँ यह भावार्थ है जैसे एक ही सूर्य मेघ के आवरणवश अपनी प्रभा की अपेक्षा अनेक प्रकार के भेदों को प्राप्त हो जाता है; उसीप्रकार निश्चय-नय से अखण्ड एक प्रतिभास स्वरूपी आत्मा भी व्यवहार-नय से कर्म समूह से वेष्टित होता हुआ मतिज्ञान आदि भेदों द्वारा अनेक प्रकार के भेदों को प्राप्त हो जाता है ॥४१॥