सामान्यतोदृष्ट: Difference between revisions
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<span class="GRef">न्या.मू./मू./1-1/5</span><span class="SanskritText"> अथ तत्पूर्वकं त्रिविधमनुमानं पूर्ववच्छेषवत्सामान्यतोदृष्टं च ॥5॥ </span> | <span class="GRef">न्या.मू./मू./1-1/5</span><span class="SanskritText"> अथ तत्पूर्वकं त्रिविधमनुमानं पूर्ववच्छेषवत्सामान्यतोदृष्टं च ॥5॥ </span> | ||
<span class="HindiText">= प्रत्यक्ष पूर्वक अनुमान तीन प्रकार का है - पूर्ववत्, शेषवत् और '''सामान्यतोदृष्ट'''। </span><span class="GRef">(<span class="GRef">राजवार्तिक अध्याय 1/20,15/78/11</span>)।</span> | <span class="HindiText">= प्रत्यक्ष पूर्वक अनुमान तीन प्रकार का है - पूर्ववत्, शेषवत् और '''सामान्यतोदृष्ट'''। </span><span class="GRef">(<span class="GRef">राजवार्तिक अध्याय 1/20,15/78/11</span>)।</span> | ||
<span class="GRef">राजवार्तिक अध्याय 1/20,15/78/15</span><span class="SanskritText">देवदत्तस्य देशांतरप्राप्तिं गतिपूर्विकां दृष्ट्वा संबंध्यंतरे सवितरि देशांतरप्राप्तिदर्शनाद् गतेरत्यंतपरोक्षाया अनुमानं सामान्यतोदृष्टम्। </span> | <P span class="GRef">राजवार्तिक अध्याय 1/20,15/78/15</span><span class="SanskritText">देवदत्तस्य देशांतरप्राप्तिं गतिपूर्विकां दृष्ट्वा संबंध्यंतरे सवितरि देशांतरप्राप्तिदर्शनाद् गतेरत्यंतपरोक्षाया अनुमानं सामान्यतोदृष्टम्। </span> | ||
<span class="HindiText">= देवदत्त का देशांतर में पहुँचना गतिपूर्वक होता है, यह देखकर सूर्य की देशांतर प्राप्ति पर से अत्यंत परोक्ष उसकी गति का अनुमान कर लेना '''सामान्यतोदृष्ट''' है। </span><br /> | <span class="HindiText">= देवदत्त का देशांतर में पहुँचना गतिपूर्वक होता है, यह देखकर सूर्य की देशांतर प्राप्ति पर से अत्यंत परोक्ष उसकी गति का अनुमान कर लेना '''सामान्यतोदृष्ट''' है। </span><br /> | ||
<span class="HindiText"> अनुमान और उसके भेदों के विस्तार के लिये देखें [[ अनुमान ]]।</span> | <span class="HindiText"> अनुमान और उसके भेदों के विस्तार के लिये देखें [[ अनुमान ]]।</span></p> | ||
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Revision as of 02:08, 19 July 2023
अनुमान परोक्ष प्रमाण का एक भेद है ।
न्यायबिंदु / मूल या टीका श्लोक 2,1/1 साधनात्साध्यज्ञानमनुमानम्।
= साधन से साध्य का ज्ञान होना अनुमान है। ( परीक्षामुख परिच्छेद 3/14) ( कार्तिकेयानुप्रेक्षा / मूल या टीका गाथा 267) ( न्यायदीपिका अधिकार 3/$17) (न्यायविनिश्चय/वृ./2,1/1/19) ( कषायपाहुड़ पुस्तक 2/1-15/$309/341/3)।
परीक्षामुख परिच्छेद 3/52-53 तदनुमान द्वेधा ॥52॥ स्वार्थ परार्थभेदात् ॥53॥
= स्वार्थ व परार्थ के भेद से वह अनुमान दो प्रकार का है। ( स्याद्वादमंजरी श्लोक 28/322/1) ( न्यायदीपिका अधिकार 3/$23)।
न्या.मू./मू./1-1/5 अथ तत्पूर्वकं त्रिविधमनुमानं पूर्ववच्छेषवत्सामान्यतोदृष्टं च ॥5॥
= प्रत्यक्ष पूर्वक अनुमान तीन प्रकार का है - पूर्ववत्, शेषवत् और सामान्यतोदृष्ट। (राजवार्तिक अध्याय 1/20,15/78/11)।
राजवार्तिक अध्याय 1/20,15/78/15देवदत्तस्य देशांतरप्राप्तिं गतिपूर्विकां दृष्ट्वा संबंध्यंतरे सवितरि देशांतरप्राप्तिदर्शनाद् गतेरत्यंतपरोक्षाया अनुमानं सामान्यतोदृष्टम्।
= देवदत्त का देशांतर में पहुँचना गतिपूर्वक होता है, यह देखकर सूर्य की देशांतर प्राप्ति पर से अत्यंत परोक्ष उसकी गति का अनुमान कर लेना सामान्यतोदृष्ट है।
अनुमान और उसके भेदों के विस्तार के लिये देखें अनुमान ।