द्रव्यानुयोग: Difference between revisions
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देखें [[ अनुयोग#1 | अनुयोग - 1]]। | <span class="GRef">रत्नकरंडश्रावकाचार श्लोक 46</span> <p class="SanskritText">जीवाजीवसुतत्त्वे पुण्यापुण्ये च बंधमोक्षौ च। द्रव्यानुयोगदीपः श्रुतविद्यालाकमातनुते ॥46॥ </p> | ||
<p class="HindiText">= '''द्रव्यानुयोगरूपी''' दीपक जीव-अजीवरूप सुतत्त्वों को, पुण्य-पाप और बंध-मोक्ष को तथा भावश्रुतरूपी प्रकाश का विस्तारता है। </p> | |||
<p>( <span class="GRef">अनगार धर्मामृत अधिकार 3/92/261</span>)।</p> | |||
<span class="GRef">धवला पुस्तक 1/1,1,7/158/4</span> <p class="PrakritText">सताणियोगम्हि जमत्थित्तं उत्तं तस्स पमाणं परूवेदि दव्वाणियोगे। </p> | |||
<p class="HindiText">= सत्प्ररूपणामें जो पदार्थों का अस्तित्व कहा गया है उनके प्रमाण का वर्णन '''द्रव्यानुयोग''' करता है। यह लक्षण अनुयोगद्वारों के अंतर्गत द्रव्यानुयोग का है।</p> | |||
<span class="GRef">द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 42/182/11</span> <p class="SanskritText">प्राभृततत्त्वार्थसिद्धांतादौ यत्र शुद्धाशुद्धजीवादिषड्द्रव्यादीनां मुख्यवृत्त्या व्याख्यानं क्रियते स द्रव्यानुयोगो भण्यते। </p> | |||
<p class="HindiText">= समयसार आदि प्राभृत और तत्त्वार्थसूत्र तथा सिद्धांत आदि शास्त्रों में मुख्यता से शुद्ध-अशुद्ध जीव आदि छः द्रव्य आदि का जो वर्णन किया गया है वह '''द्रव्यानुयोग''' कहलाता है। </p> | |||
<p class="HindiText">अधिक जानकारी के लिये देखें [[ अनुयोग#1 | अनुयोग - 1]]। </p> | |||
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Revision as of 10:03, 14 August 2023
सिद्धांतकोष से
रत्नकरंडश्रावकाचार श्लोक 46
जीवाजीवसुतत्त्वे पुण्यापुण्ये च बंधमोक्षौ च। द्रव्यानुयोगदीपः श्रुतविद्यालाकमातनुते ॥46॥
= द्रव्यानुयोगरूपी दीपक जीव-अजीवरूप सुतत्त्वों को, पुण्य-पाप और बंध-मोक्ष को तथा भावश्रुतरूपी प्रकाश का विस्तारता है।
( अनगार धर्मामृत अधिकार 3/92/261)।
धवला पुस्तक 1/1,1,7/158/4
सताणियोगम्हि जमत्थित्तं उत्तं तस्स पमाणं परूवेदि दव्वाणियोगे।
= सत्प्ररूपणामें जो पदार्थों का अस्तित्व कहा गया है उनके प्रमाण का वर्णन द्रव्यानुयोग करता है। यह लक्षण अनुयोगद्वारों के अंतर्गत द्रव्यानुयोग का है।
द्रव्यसंग्रह / मूल या टीका गाथा 42/182/11
प्राभृततत्त्वार्थसिद्धांतादौ यत्र शुद्धाशुद्धजीवादिषड्द्रव्यादीनां मुख्यवृत्त्या व्याख्यानं क्रियते स द्रव्यानुयोगो भण्यते।
= समयसार आदि प्राभृत और तत्त्वार्थसूत्र तथा सिद्धांत आदि शास्त्रों में मुख्यता से शुद्ध-अशुद्ध जीव आदि छः द्रव्य आदि का जो वर्णन किया गया है वह द्रव्यानुयोग कहलाता है।
अधिक जानकारी के लिये देखें अनुयोग - 1।
पुराणकोष से
श्रुतस्कंध का चतुर्थ अनुयोग । इसमें प्रमाण, नय, निक्षेप तथा सत् संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अंतर, भाव, अल्पबहुत्व, निर्देश स्वामित्व, साधन, अधिकरण, स्थिति और विधान के द्वारा द्रव्यों के गुण, पर्याय और भेदों का तात्त्विक वर्णन रहता है । महापुराण 2.101