स्थितिबंध निर्देश: Difference between revisions
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<p class="HindiText" id="2.1"><strong>1. स्थितिबंध में चार अनुयोग द्वार</strong></p> | <p class="HindiText" id="2.1"><strong>1. स्थितिबंध में चार अनुयोग द्वार</strong></p> | ||
<p | <p><span class="GRef"> षट्खंडागम/11/4,2,6/ सूत्र 36/140 </span><span class="PrakritText">एत्तो मूलपयडिट्ठिदिबंधे पुव्वं गमणिज्जे तत्थ इमाणि चत्तारि अणियोगद्दाराणि ट्ठिदिबंधट्ठाणप्ररूवणा णिसेयपरूवणा आबाधाकंडयपरूवणा अप्पाबहुए त्ति।36।</span> = <span class="HindiText">आगे मूल प्रकृति स्थितिबंध पूर्व में ज्ञातव्य है। उसमें ये चार अनुयोगद्वार हैं-स्थिति बंधस्थान प्ररूपणा, निषेक-प्ररूपणा, आबाधा कांडक प्ररूपणा, और अल्प बहुत्व।</span></p> | ||
<p class="HindiText" id="2.2"><strong>2. भवस्थिति व कायस्थिति में अंतर</strong></p> | <p class="HindiText" id="2.2"><strong>2. भवस्थिति व कायस्थिति में अंतर</strong></p> | ||
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<p class="HindiText" id="2.3"><strong>3. एकसमयिक बंध को बंध नहीं कहते</strong></p> | <p class="HindiText" id="2.3"><strong>3. एकसमयिक बंध को बंध नहीं कहते</strong></p> | ||
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<p class="HindiText" id="2.4"><strong>4. स्थिति व अनुभाग बंध की प्रधानता</strong></p> | <p class="HindiText" id="2.4"><strong>4. स्थिति व अनुभाग बंध की प्रधानता</strong></p> | ||
<p | <p><span class="GRef"> राजवार्तिक/6/3/7/507/31 </span><span class="SanskritText">अनुभागबंधो हि प्रधानभूत: तन्निमित्तत्वात् सुखदु:खविपाकस्य।</span> = <span class="HindiText">अनुभागबंध प्रधान है, वही सुख-दु:खरूप फल का निमित्त होता है।</span></p> | ||
<p | <p><span class="GRef"> गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/800/979/8 </span><span class="SanskritText">ऐतेषु षट्सु सत्सु जीवो ज्ञानदर्शनावरणद्वयं भूयो बध्नाति-प्रचुरवृत्त्या स्थित्त्यनुभागौ बध्नातीत्यर्थ:।</span> = <span class="HindiText">इन छह (प्रत्यनीक आदि) कार्यों के होते जीव ज्ञानावरण और दर्शनावरण कर्म को अधिक बाँधता है अर्थात् ज्ञानावरण व दर्शनावरण कर्म को स्थिति व अनुभाग को प्रचुरता लिये बाँधे हैं</span>।</p> | ||
<p | <p><span class="GRef"> पंचाध्यायी / उत्तरार्ध/637 </span><span class="SanskritText">स्वार्थ क्रियासमर्थोऽत्र बंध: स्याद् रससंज्ञिक:। शेषबंधत्रिको ऽप्येष न कार्यकरणक्षम:।937।</span> = <span class="HindiText">केवल अनुभाग नामक बंध ही बाँधने रूप अपनी क्रिया में समर्थ है। तथा शेष के तीनों बंध आत्मा को बाँधने रूप कार्य करने में समर्थ नहीं हैं।</span></p> | ||
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Latest revision as of 12:19, 14 August 2023
2. स्थितिबंध निर्देश
1. स्थितिबंध में चार अनुयोग द्वार
षट्खंडागम/11/4,2,6/ सूत्र 36/140 एत्तो मूलपयडिट्ठिदिबंधे पुव्वं गमणिज्जे तत्थ इमाणि चत्तारि अणियोगद्दाराणि ट्ठिदिबंधट्ठाणप्ररूवणा णिसेयपरूवणा आबाधाकंडयपरूवणा अप्पाबहुए त्ति।36। = आगे मूल प्रकृति स्थितिबंध पूर्व में ज्ञातव्य है। उसमें ये चार अनुयोगद्वार हैं-स्थिति बंधस्थान प्ररूपणा, निषेक-प्ररूपणा, आबाधा कांडक प्ररूपणा, और अल्प बहुत्व।
2. भवस्थिति व कायस्थिति में अंतर
राजवार्तिक/3/39/6/210/3 एकभवविषया भवस्थिति:। कायस्थितिरेककायापरित्यागेन नानाभवग्रहणविषया। = एक भव की स्थिति भवस्थिति कहलाती है और एक काय का परित्याग किये बिना अनेक भवविषयक कायस्थिति होती है।
3. एकसमयिक बंध को बंध नहीं कहते
धवला 13/5,4,24/54/5 ट्ठिदि-अणुभागबंधाभावेण सुक्ककुड्ड पक्खित्तवालुवमुट्ठिव्व जीवसंबंधविदियसमए चेव णिवदंतस्स बंधववएसविरोहादो। = स्थिति और अनुभाग बंध के बिना, शुष्क भीत पर फैंकी गयी मुट्ठीभर बालुका के समान जीव से संबंध होने पर, दूसरे समय में ही पतित हुए सातावेदनीय कर्म को बंध संज्ञा देने में विरोध आता है।
4. स्थिति व अनुभाग बंध की प्रधानता
राजवार्तिक/6/3/7/507/31 अनुभागबंधो हि प्रधानभूत: तन्निमित्तत्वात् सुखदु:खविपाकस्य। = अनुभागबंध प्रधान है, वही सुख-दु:खरूप फल का निमित्त होता है।
गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/800/979/8 ऐतेषु षट्सु सत्सु जीवो ज्ञानदर्शनावरणद्वयं भूयो बध्नाति-प्रचुरवृत्त्या स्थित्त्यनुभागौ बध्नातीत्यर्थ:। = इन छह (प्रत्यनीक आदि) कार्यों के होते जीव ज्ञानावरण और दर्शनावरण कर्म को अधिक बाँधता है अर्थात् ज्ञानावरण व दर्शनावरण कर्म को स्थिति व अनुभाग को प्रचुरता लिये बाँधे हैं।
पंचाध्यायी / उत्तरार्ध/637 स्वार्थ क्रियासमर्थोऽत्र बंध: स्याद् रससंज्ञिक:। शेषबंधत्रिको ऽप्येष न कार्यकरणक्षम:।937। = केवल अनुभाग नामक बंध ही बाँधने रूप अपनी क्रिया में समर्थ है। तथा शेष के तीनों बंध आत्मा को बाँधने रूप कार्य करने में समर्थ नहीं हैं।