भाव परमाणु: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<span class="GRef"> पंचास्तिकाय / तात्पर्यवृत्ति/152/219/17 </span><span class="SanskritText">द्रव्यपरमाणुशब्देन द्रव्यसूक्ष्मत्वं ग्राह्यं भावपरमाणुशब्देन च भावसूक्ष्मत्वं न च पुद्गलपरमाणुः। ....द्रव्यशब्देनात्मद्रव्यं ग्राह्यं तस्य तु परमाणुः। परमाणुरिति कोऽर्थः। रागाद्युपाधिरहिता सूक्ष्मावस्था। तस्या सूक्ष्मत्वं कथमिति चेत्। निर्विकल्पसमाधिविषयादिति द्रव्यपरमाणुशब्दस्य व्याख्यानं। भावशब्देन तु तस्यैवात्म-द्रव्यस्य स्वसंवेदनज्ञानपरिणामो ग्राह्यः तस्य भावस्य परमाणुः। परमाणुरिति कोऽर्थः। रागादिविकल्परहिता सूक्ष्मावस्था। तस्याः सूक्ष्मत्वं कथमिति चेत्। इंद्रियमनोविकल्पाविषयादिति भावपरमाणुशब्दस्य व्याख्यानं ज्ञातव्यं। </span>= <span class="HindiText">द्रव्यपरमाणु से द्रव्य की सूक्ष्मता और भाव परमाणु से भाव की सूक्ष्मता कही गयी है। उसमें पुद्गल परमाणु का कथन नहीं है। ...द्रव्य शब्द से आत्मद्रव्य ग्रहण करना चाहिए। उसका परमाणु अर्थात् रागादि उपाधि से रहित उसकी सूक्ष्मावस्था, क्योंकि वह निर्विकल्प समाधि का विषय है। इस प्रकार द्रव्यपरमाणु कहा गया। भाव शब्द से उस ही आत्मद्रव्य का स्वसंवेदन परिणाम ग्रहण करना चाहिए। उसके भाव का परमाणु अर्थात् रागादि विकल्प रहित सूक्ष्मावस्था, क्योंकि वह इंद्रिय और मन के विकल्पों का विषय नहीं है। इस प्रकार भावपरमाणु शब्द का व्याख्यान जानना चाहिए। <span class="GRef"> (परमात्मप्रकाश टीका/2/33/153/2)</span><br /> | <span class="GRef"> पंचास्तिकाय / तात्पर्यवृत्ति/152/219/17 </span><span class="SanskritText">द्रव्यपरमाणुशब्देन द्रव्यसूक्ष्मत्वं ग्राह्यं भावपरमाणुशब्देन च भावसूक्ष्मत्वं न च पुद्गलपरमाणुः। ....द्रव्यशब्देनात्मद्रव्यं ग्राह्यं तस्य तु परमाणुः। परमाणुरिति कोऽर्थः। रागाद्युपाधिरहिता सूक्ष्मावस्था। तस्या सूक्ष्मत्वं कथमिति चेत्। निर्विकल्पसमाधिविषयादिति द्रव्यपरमाणुशब्दस्य व्याख्यानं। भावशब्देन तु तस्यैवात्म-द्रव्यस्य स्वसंवेदनज्ञानपरिणामो ग्राह्यः तस्य भावस्य परमाणुः। परमाणुरिति कोऽर्थः। रागादिविकल्परहिता सूक्ष्मावस्था। तस्याः सूक्ष्मत्वं कथमिति चेत्। इंद्रियमनोविकल्पाविषयादिति भावपरमाणुशब्दस्य व्याख्यानं ज्ञातव्यं। </span>= <span class="HindiText">द्रव्यपरमाणु से द्रव्य की सूक्ष्मता और भाव परमाणु से भाव की सूक्ष्मता कही गयी है। उसमें पुद्गल परमाणु का कथन नहीं है। ...द्रव्य शब्द से आत्मद्रव्य ग्रहण करना चाहिए। उसका परमाणु अर्थात् रागादि उपाधि से रहित उसकी सूक्ष्मावस्था, क्योंकि वह निर्विकल्प समाधि का विषय है। इस प्रकार द्रव्यपरमाणु कहा गया। भाव शब्द से उस ही आत्मद्रव्य का स्वसंवेदन परिणाम ग्रहण करना चाहिए। उसके भाव का परमाणु अर्थात् रागादि विकल्प रहित सूक्ष्मावस्था, क्योंकि वह इंद्रिय और मन के विकल्पों का विषय नहीं है। इस प्रकार भावपरमाणु शब्द का व्याख्यान जानना चाहिए। <span class="GRef"> (परमात्मप्रकाश टीका/2/33/153/2)</span><br /> | ||
<span class="HindiText"> देखें [[ परमाणु#1.6 | परमाणु - 1.6 ]]। </span> | <span class="HindiText"> देखें [[ परमाणु#1.6 | परमाणु - 1.6 ]]। </span> | ||
Revision as of 09:44, 19 August 2023
पंचास्तिकाय / तात्पर्यवृत्ति/152/219/17 द्रव्यपरमाणुशब्देन द्रव्यसूक्ष्मत्वं ग्राह्यं भावपरमाणुशब्देन च भावसूक्ष्मत्वं न च पुद्गलपरमाणुः। ....द्रव्यशब्देनात्मद्रव्यं ग्राह्यं तस्य तु परमाणुः। परमाणुरिति कोऽर्थः। रागाद्युपाधिरहिता सूक्ष्मावस्था। तस्या सूक्ष्मत्वं कथमिति चेत्। निर्विकल्पसमाधिविषयादिति द्रव्यपरमाणुशब्दस्य व्याख्यानं। भावशब्देन तु तस्यैवात्म-द्रव्यस्य स्वसंवेदनज्ञानपरिणामो ग्राह्यः तस्य भावस्य परमाणुः। परमाणुरिति कोऽर्थः। रागादिविकल्परहिता सूक्ष्मावस्था। तस्याः सूक्ष्मत्वं कथमिति चेत्। इंद्रियमनोविकल्पाविषयादिति भावपरमाणुशब्दस्य व्याख्यानं ज्ञातव्यं। = द्रव्यपरमाणु से द्रव्य की सूक्ष्मता और भाव परमाणु से भाव की सूक्ष्मता कही गयी है। उसमें पुद्गल परमाणु का कथन नहीं है। ...द्रव्य शब्द से आत्मद्रव्य ग्रहण करना चाहिए। उसका परमाणु अर्थात् रागादि उपाधि से रहित उसकी सूक्ष्मावस्था, क्योंकि वह निर्विकल्प समाधि का विषय है। इस प्रकार द्रव्यपरमाणु कहा गया। भाव शब्द से उस ही आत्मद्रव्य का स्वसंवेदन परिणाम ग्रहण करना चाहिए। उसके भाव का परमाणु अर्थात् रागादि विकल्प रहित सूक्ष्मावस्था, क्योंकि वह इंद्रिय और मन के विकल्पों का विषय नहीं है। इस प्रकार भावपरमाणु शब्द का व्याख्यान जानना चाहिए। (परमात्मप्रकाश टीका/2/33/153/2)
देखें परमाणु - 1.6 ।