उपसर्ग: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> >(1) मुनियों की तप-साधना और ध्यान में देव, मनुष्य, पशु और अचेतन पदार्थों द्वारा अप्रत्याशित रूप से विभिन्न प्रकार के कष्ट और बाधाएँ प्राप्त होना । <span class="GRef"> महापुराण 70. 280-282, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 1.23, 20. 27, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 13.59-82 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1"> (1) मुनियों की तप-साधना और ध्यान में देव, मनुष्य, पशु और अचेतन पदार्थों द्वारा अप्रत्याशित रूप से विभिन्न प्रकार के कष्ट और बाधाएँ प्राप्त होना । <span class="GRef"> महापुराण 70. 280-282, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 1.23, 20. 27, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 13.59-82 </span></p> | ||
(2) गांधर्व की तीन विधियों मे पदगत एक विधि है । इसमें जाति तद्धित छंद, संधि, स्वर, तिडंत, उपसर्ग तथा वर्ण आदि आते हैं । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 19.149 </span></p> | <p id="1">(2) गांधर्व की तीन विधियों मे पदगत एक विधि है । इसमें जाति तद्धित छंद, संधि, स्वर, तिडंत, उपसर्ग तथा वर्ण आदि आते हैं । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 19.149 </span></p> | ||
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Revision as of 22:50, 4 September 2023
सिद्धांतकोष से
तिलोयपण्णत्ति/6/1620
सत्तमतेवीसंतिमतित्थयराणं च उवसग्गो।1620।
=(हुंडावसर्पिणी काल में) सातवें, तेईसवें और अंतिम तीर्थंकर के उपसर्ग भी होता है।
तीर्थंकरों पर भी कदाचित् उपसर्ग आते हैं - अधिक जानकारी के लिये देखें तीर्थंकर - 1
पुराणकोष से
(1) मुनियों की तप-साधना और ध्यान में देव, मनुष्य, पशु और अचेतन पदार्थों द्वारा अप्रत्याशित रूप से विभिन्न प्रकार के कष्ट और बाधाएँ प्राप्त होना । महापुराण 70. 280-282, हरिवंशपुराण 1.23, 20. 27, वीरवर्द्धमान चरित्र 13.59-82
(2) गांधर्व की तीन विधियों मे पदगत एक विधि है । इसमें जाति तद्धित छंद, संधि, स्वर, तिडंत, उपसर्ग तथा वर्ण आदि आते हैं । हरिवंशपुराण 19.149