अग्राह्य वर्गणा: Difference between revisions
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<span class="GRef"> धवला 14/5, 6, 719/543/10 </span><span class="PrakritText">पंचण्णं सरीराणं जा गेज्झा सा गहणपाओग्गा णाम । जा पुण तासिमगेज्झा (सा) अगहण पाओग्गा णाम । </span>= <span class="HindiText">पाँच शरीरों के जो ग्रहण योग्य है वह ग्रहणप्रायोग्य कहलाती है । परंतु जो उनके ग्रहण योग्य नहीं है वह अग्रहणप्रायोग्य कहलाती है । | <span class="GRef"> धवला 14/5, 6, 719/543/10 </span><span class="PrakritText">पंचण्णं सरीराणं जा गेज्झा सा गहणपाओग्गा णाम । जा पुण तासिमगेज्झा (सा) अगहण पाओग्गा णाम । </span>= <span class="HindiText">पाँच शरीरों के जो ग्रहण योग्य है वह ग्रहणप्रायोग्य कहलाती है । परंतु जो उनके ग्रहण योग्य नहीं है वह अग्रहणप्रायोग्य कहलाती है । <span class="GRef">( धवला 14/5, 6, 82/61/3 )</span>। <br/> | ||
<span class="HindiText"><strong> ग्राह्य अग्राह्य वर्गणाओं के लक्षण </strong></span><br /> | <span class="HindiText"><strong> ग्राह्य अग्राह्य वर्गणाओं के लक्षण </strong></span><br /> |
Latest revision as of 22:14, 17 November 2023
धवला 14/5, 6, 719/543/10 पंचण्णं सरीराणं जा गेज्झा सा गहणपाओग्गा णाम । जा पुण तासिमगेज्झा (सा) अगहण पाओग्गा णाम । = पाँच शरीरों के जो ग्रहण योग्य है वह ग्रहणप्रायोग्य कहलाती है । परंतु जो उनके ग्रहण योग्य नहीं है वह अग्रहणप्रायोग्य कहलाती है । ( धवला 14/5, 6, 82/61/3 )।
ग्राह्य अग्राह्य वर्गणाओं के लक्षण
षट्खण्डागम 14/5, 6/सूत्र/पृष्ठ अग्गहणदव्ववग्गणा आहारदव्वमधिच्छिदा तेया दव्ववग्गणं ण पावदि ताणं दव्वाणमंतरे अगहण दव्ववग्गणा णाम । (733/548) । अगहणदव्ववग्गणा तेजादव्वमविच्छिदा भासादव्वं ण पावेदि ताणं दव्वाणमंतरे अगहणदव्ववग्गणा णाम । (740/549) । अग्गहणदव्ववग्गणा भासा दव्वमधिच्छिदा मणदव्वं ण पावेदि ताणं दव्वाणमंतरे अग्गहणदव्ववग्गणा णाम । (747/551) । अगहण दव्ववग्गणा (मण) दव्वमविच्छिदा कम्मइयदव्वं ण पावदि ताणं दव्वाणमंतरे अगहणदव्ववग्गणा णाम । (754/552) । = अग्रहण वर्गणा आहार द्रव्य से प्रारंभ होकर तैजसद्रव्य वर्गणा को नहीं प्राप्त होती है, अथवा तैजसद्रव्य वर्गणा से प्रारंभ होकर भाषा द्रव्य को नहीं प्राप्त होती है, अथवा भाषा द्रव्यवर्गणा से प्रारंभ होकर मनोद्रव्यवर्गणा को नहीं प्राप्त होती है, अथवा मनोद्रव्यवर्गणा से प्रारंभ होकर कार्मण द्रव्यवर्गणा को नहीं प्राप्त होती है । अतः उन दोनों द्रव्यों के मध्य में जो होती है उसकी अग्रहण द्रव्यवर्गणा संज्ञा है ।
अधिक जानकारी के लिए देखें वर्गणा - 1.4, 1.6 तथा 1.7।