अभिराम: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p> जंबूदीप में पश्चिम विदेह क्षेत्र के चक्रवर्ती राजा अचल तथा उसकी रानी रत्ना का पुत्र । दीक्षा धारण करने को उद्यत देखकर इसके पिता ने इसका विवाह कर दिया और इसे ऐश्वर्य में योजित कर दिया । तीन हजार स्त्रियों के होते हुए भो यह मुनिव्रत के लिए उत्कंठित रहता था । यह असिधारा व्रत पालता और स्त्रियों को जैनधर्म का उपदेश देता था । अंत में शरीर से निर्मोही होकर इसने चौंसठ हजार वर्ष तक कठोर तप किया और मरण कर ब्रह्मोत्तर स्वर्ग में देव हुआ । वहाँ से च्युत होकर यह अयोध्या में भरत हुआ । <span class="GRef"> पद्मपुराण 85.102-117, 166 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> जंबूदीप में पश्चिम विदेह क्षेत्र के चक्रवर्ती राजा अचल तथा उसकी रानी रत्ना का पुत्र । दीक्षा धारण करने को उद्यत देखकर इसके पिता ने इसका विवाह कर दिया और इसे ऐश्वर्य में योजित कर दिया । तीन हजार स्त्रियों के होते हुए भो यह मुनिव्रत के लिए उत्कंठित रहता था । यह असिधारा व्रत पालता और स्त्रियों को जैनधर्म का उपदेश देता था । अंत में शरीर से निर्मोही होकर इसने चौंसठ हजार वर्ष तक कठोर तप किया और मरण कर ब्रह्मोत्तर स्वर्ग में देव हुआ । वहाँ से च्युत होकर यह अयोध्या में भरत हुआ । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_85#102|पद्मपुराण - 85.102-117]], 166 </span></p> | ||
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Revision as of 22:15, 17 November 2023
जंबूदीप में पश्चिम विदेह क्षेत्र के चक्रवर्ती राजा अचल तथा उसकी रानी रत्ना का पुत्र । दीक्षा धारण करने को उद्यत देखकर इसके पिता ने इसका विवाह कर दिया और इसे ऐश्वर्य में योजित कर दिया । तीन हजार स्त्रियों के होते हुए भो यह मुनिव्रत के लिए उत्कंठित रहता था । यह असिधारा व्रत पालता और स्त्रियों को जैनधर्म का उपदेश देता था । अंत में शरीर से निर्मोही होकर इसने चौंसठ हजार वर्ष तक कठोर तप किया और मरण कर ब्रह्मोत्तर स्वर्ग में देव हुआ । वहाँ से च्युत होकर यह अयोध्या में भरत हुआ । पद्मपुराण - 85.102-117, 166