ऊहा: Difference between revisions
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<span class="GRef">परीक्षामुख परिच्छेद 3/11-13/2</span> <p class="SanskritText">उपलंभानुपलंभनिमित्तं व्याप्तिज्ञानमूहः ।11। इदमस्मिन्सत्येव भवत्यसति न भवत्येवेति च ।12। यथाग्नावेव घूमस्तदभावे न भवत्येवेति च ।13।</p> | <span class="GRef">परीक्षामुख परिच्छेद 3/11-13/2</span> <p class="SanskritText">उपलंभानुपलंभनिमित्तं व्याप्तिज्ञानमूहः ।11। इदमस्मिन्सत्येव भवत्यसति न भवत्येवेति च ।12। यथाग्नावेव घूमस्तदभावे न भवत्येवेति च ।13।</p> | ||
<p class="HindiText">= उपलब्धि और अनुपलब्धि की सहायता से होने वाले व्याप्ति ज्ञान को तर्क कहते हैं। और उसका स्वरूप ऐसा है-`इसके होते ही यह होता है और इसके न होते होता ही नहीं है' जैसे-अग्नि के होते ही धुआँ होता है, अग्नि के न होते होता ही नहीं ।11-13।</p> | <p class="HindiText">= उपलब्धि और अनुपलब्धि की सहायता से होने वाले व्याप्ति ज्ञान को तर्क कहते हैं। और उसका स्वरूप ऐसा है-`इसके होते ही यह होता है और इसके न होते होता ही नहीं है' जैसे-अग्नि के होते ही धुआँ होता है, अग्नि के न होते होता ही नहीं ।11-13।</p> | ||
<p> | <p><span class="GRef">(स्याद्वादमंजरी 28/321/27)</span></p> | ||
Latest revision as of 22:16, 17 November 2023
सिद्धांतकोष से
षट्खंडागम पुस्तक 13/5,5/सूत्र 38/242
ईहा ऊहा अपोहा मग्गणा गवेसणा मीमांसा 38।
= ईहा, ऊहा, अपोहा, मार्गणा, गवेषणा और मीमांसा ये ईहा के पर्याय नाम हैं।
तत्त्वार्थाधिगम भाष्य 1/15
ईहाऊहातर्कपरीक्षाविचारणाजिज्ञासा इत्यनर्थांतरम्।
= ईहा, ऊहा, तर्क, परीक्षा, विचारणा, जिज्ञासा ये सब शब्द एकार्थवाची हैं।
सर्वार्थसिद्धि अध्याय 9/43/455/6
तर्कणमूहनं वितर्कः श्रुतज्ञानमित्यर्थः।
= तर्कणा करना, अर्थात् ऊहा करना, वितर्क अर्थात् श्रुतज्ञान कहलाता है।
धवला पुस्तक 13/5,5,38/242/8
अवगृहीतार्थस्य अनधिगतविशेषः उह्यते तर्क्यते अनया इति ऊहा।
= जिससे अवग्रह के द्वारा ग्रहण किये अर्थ में नहीं जाने गये विशेष की `ऊह्यते' अर्थात् तर्कणा करते हैं वह ऊहा है।
परीक्षामुख परिच्छेद 3/11-13/2
उपलंभानुपलंभनिमित्तं व्याप्तिज्ञानमूहः ।11। इदमस्मिन्सत्येव भवत्यसति न भवत्येवेति च ।12। यथाग्नावेव घूमस्तदभावे न भवत्येवेति च ।13।
= उपलब्धि और अनुपलब्धि की सहायता से होने वाले व्याप्ति ज्ञान को तर्क कहते हैं। और उसका स्वरूप ऐसा है-`इसके होते ही यह होता है और इसके न होते होता ही नहीं है' जैसे-अग्नि के होते ही धुआँ होता है, अग्नि के न होते होता ही नहीं ।11-13।
(स्याद्वादमंजरी 28/321/27)
पुराणकोष से
भरतक्षेत्र के आर्यखंड की एक नदी । भरत की सेना ने इस नदी को पार किया था । महापुराण 29.62