कपित्थमुष्टि: Difference between revisions
From जैनकोष
J2jinendra (talk | contribs) No edit summary |
(Imported from text file) |
||
Line 11: | Line 11: | ||
<li class="HindiText"> कैथ का फल पकड़ने वाले मनुष्य की भाँति हाथ का तलभाग पसारकर या पाँचों अंगुली सिकोड़कर अर्थात् मुट्ठी बाँधकर खड़े होना '''कपित्थमुष्टि''' है। सिर को हिलाते हुए खड़े होना सिरचालन दोष है। </li></ol> | <li class="HindiText"> कैथ का फल पकड़ने वाले मनुष्य की भाँति हाथ का तलभाग पसारकर या पाँचों अंगुली सिकोड़कर अर्थात् मुट्ठी बाँधकर खड़े होना '''कपित्थमुष्टि''' है। सिर को हिलाते हुए खड़े होना सिरचालन दोष है। </li></ol> | ||
<p class="HindiText">ऐसे ये कायोत्सर्ग के दोष हैं | <p class="HindiText">ऐसे ये कायोत्सर्ग के दोष हैं <span class="GRef">( अनगारधर्मामृत/8/112-119, </span></p> | ||
<span class="HindiText">कायोत्सर्ग का एक अतिचार–देखें [[ व्युत्सर्ग#10.1 | व्युत्सर्ग - 10.1]]।</span> | <span class="HindiText">कायोत्सर्ग का एक अतिचार–देखें [[ व्युत्सर्ग#10.1 | व्युत्सर्ग - 10.1]]।</span> |
Latest revision as of 22:17, 17 November 2023
चारित्रसार/156/2 व्युत्सृष्टबाहुयुगले सर्वांगचलनरहिते कायोत्सर्गेऽपि दोषाः स्युः। घोटकपादं, लतावक्रं, स्तंभावष्टंभं, कुड्याश्रितं, मालिकोद्वहनं, शबरीगुह्यगूहनं, शृंखलितं, लंबितं उत्तरितं, स्तनदृष्टिः, काकालोकनं, खलीनितं, युगकंधरं, कपित्थमुष्टिः, शीर्षप्रकंपितं, मूकसंज्ञा, अंगुलिचालनं, भ्रूक्षेपं, उन्मत्तं पिशाचं, अष्टदिगवलोकनं, ग्रीवोन्नमनं, ग्रीवावनमनं, निष्ठीवनं, अंगस्पर्शनमिति द्वात्रिंशद्दोषा भवंति। = जिसमें दोनों भुजाएँ लंबी छोड़ दी गयी हैं, चार अंगुल के अंतर से दोनों पैर एक से रक्खे हुए हैं और शरीर के अंगोपांग सब स्थिर हैं, ऐसे कायोत्सर्ग के भी 32 दोष होते हैं–उनमें से एक कपित्थमुष्टि है।
भगवती आराधना / विजयोदया टीका/116/279/8 कायोत्सर्गं प्रपन्नः स्थानदोषान् परिहरेत्। के ते इति चेदुच्यते।
- कपित्थफलग्राहीव विकाशिकरतलं, संकुचितांगुलिपंचकं वा कृत्वा,
- पीतमदिर इव परवशगतशरीरो वा भूत्वावस्थानं इत्यमी दोषाः। =
- मुनियों को उत्थित कायोत्सर्ग के दोषों का त्याग करना चाहिए। उन दोषों का स्वरूप इस प्रकार है–
- कैथ का फल पकड़ने वाले मनुष्य की भाँति हाथ का तलभाग पसारकर या पाँचों अंगुली सिकोड़कर अर्थात् मुट्ठी बाँधकर खड़े होना कपित्थमुष्टि है। सिर को हिलाते हुए खड़े होना सिरचालन दोष है।
ऐसे ये कायोत्सर्ग के दोष हैं ( अनगारधर्मामृत/8/112-119,
कायोत्सर्ग का एक अतिचार–देखें व्युत्सर्ग - 10.1।