कपिल: Difference between revisions
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<Span class="HindiText"> (1) रोहिणी के स्वयंवर में सम्मिलित वेदसामपुर का राजा । कृष्ण-जरासंध युद्ध में इस नृप ने कृष्ण की ओर से भाग लिया था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 24.26-27, 31. 30, 50. 82 </span></br><Span class="HindiText"> (2) धातकीखंड के भरत क्षेत्र का नारायण । यह एक समय चंपा नगरी के बाहर आये हुए मुनि की वंदना के लिए आया था । वहाँ इसने विष्णु के शंख की महाध्वनि सुनकर शंख बजाने वाले, कृष्ण से मिलने की मुनि से इच्छा प्रकट की थी । मुनि ने द से समझाया था कि तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलभद्र, नारायण और प्रतिनारायणों का परस्पर मिलन नहीं होता, केवल चिह्न मात्र से ही उनसे मिलन संभव है । इसके पश्चात् शंखध्वनि के माध्यम से ही इसने कृष्ण से भेंट की थी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 54.56-61, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 22.5.13 </span></br><Span class="HindiText"> (3) वसुदेव तथा कपिला का पुत्र । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 24. 26-27, 48.58 </span></br><Span class="HindiText"> (4) मरीचि का शिष्य । <span class="GRef"> महापुराण 74.66 </span>देखें [[ मरीचि ]]</br><Span class="HindiText"> (5) मगधदेश मे स्थित अचल ग्रामवासी धरणीजट ब्राह्मण की दासी का पुत्र । इसे पिता ने पर से निकाल दिया था, अत: यह रत्नपुर चला गया और वहाँ सत्यकि विप्र की कन्या सत्यभामा से इसका विवाह हुआ । इसके पश्चात् इस नगर से भी निकाल दिये जाने पर यह संसार में भ्रमण करता रहा । अंत में मरकर यह कौशिक ऋषि का मृगशृंग-नामक पुत्र हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 62.325-331, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 4.194-203, 220-221 </span></br><Span class="HindiText"> (6) अयोध्या निवासी एक ब्राह्मण । काली नामा ब्राह्मणी इसकी भार्या था । मरीचि का जीव ब्रह्म कल्प से स्तुत होकर जटिल नाम से इन्हीं का पुत्र हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 74.68, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 2.105-108 </span></br><Span class="HindiText"> (7) वल्कलधारी तापस । <span class="GRef"> पद्मपुराण 4.126-127 </span></br><Span class="HindiText"> (8) अरुणग्राम का निवासी एक क्रोधी ब्राह्मण । इसने वनवास के समय उसके यहाँ आये राम, लक्ष्मण और सीता को अपने घर से निकाल दिया था । इस पर लक्ष्मण को क्रोध आ गया और जैसे ही वह इसे दंड देने लगा राम ने उसे रोक दिया । तब इसने आत्मनिंदा की और अंत में यह दिगंबर साधु हो गया । <span class="GRef"> पद्मपुराण 35.7-8, 13-15, 25-29, 97-102, 176-192 </span></p> | <Span class="HindiText"> (1) रोहिणी के स्वयंवर में सम्मिलित वेदसामपुर का राजा । कृष्ण-जरासंध युद्ध में इस नृप ने कृष्ण की ओर से भाग लिया था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 24.26-27, 31. 30, 50. 82 </span></br><Span class="HindiText"> (2) धातकीखंड के भरत क्षेत्र का नारायण । यह एक समय चंपा नगरी के बाहर आये हुए मुनि की वंदना के लिए आया था । वहाँ इसने विष्णु के शंख की महाध्वनि सुनकर शंख बजाने वाले, कृष्ण से मिलने की मुनि से इच्छा प्रकट की थी । मुनि ने द से समझाया था कि तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलभद्र, नारायण और प्रतिनारायणों का परस्पर मिलन नहीं होता, केवल चिह्न मात्र से ही उनसे मिलन संभव है । इसके पश्चात् शंखध्वनि के माध्यम से ही इसने कृष्ण से भेंट की थी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 54.56-61, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 22.5.13 </span></br><Span class="HindiText"> (3) वसुदेव तथा कपिला का पुत्र । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 24. 26-27, 48.58 </span></br><Span class="HindiText"> (4) मरीचि का शिष्य । <span class="GRef"> महापुराण 74.66 </span>देखें [[ मरीचि ]]</br><Span class="HindiText"> (5) मगधदेश मे स्थित अचल ग्रामवासी धरणीजट ब्राह्मण की दासी का पुत्र । इसे पिता ने पर से निकाल दिया था, अत: यह रत्नपुर चला गया और वहाँ सत्यकि विप्र की कन्या सत्यभामा से इसका विवाह हुआ । इसके पश्चात् इस नगर से भी निकाल दिये जाने पर यह संसार में भ्रमण करता रहा । अंत में मरकर यह कौशिक ऋषि का मृगशृंग-नामक पुत्र हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 62.325-331, </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 4.194-203, 220-221 </span></br><Span class="HindiText"> (6) अयोध्या निवासी एक ब्राह्मण । काली नामा ब्राह्मणी इसकी भार्या था । मरीचि का जीव ब्रह्म कल्प से स्तुत होकर जटिल नाम से इन्हीं का पुत्र हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 74.68, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 2.105-108 </span></br><Span class="HindiText"> (7) वल्कलधारी तापस । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_4#126|पद्मपुराण - 4.126-127]] </span></br><Span class="HindiText"> (8) अरुणग्राम का निवासी एक क्रोधी ब्राह्मण । इसने वनवास के समय उसके यहाँ आये राम, लक्ष्मण और सीता को अपने घर से निकाल दिया था । इस पर लक्ष्मण को क्रोध आ गया और जैसे ही वह इसे दंड देने लगा राम ने उसे रोक दिया । तब इसने आत्मनिंदा की और अंत में यह दिगंबर साधु हो गया । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_35#7|पद्मपुराण - 35.7-8]],[[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_35#13|पद्मपुराण - 35.13-15]], 25-29, 97-102, 176-192 </span></p> | ||
Revision as of 22:17, 17 November 2023
सिद्धांतकोष से
- ( पद्मपुराण/35/ श्लोक) एक ब्राह्मण था, जिसने वनवासी राम को अपने घर में आया देखकर अत्यंत क्रोध किया था (8-13)। पीछे जंगल में राम का अतिशय देखकर अपने पूर्वकृत्य के लिए राम से क्षमा माँगी (84, 145, 177)। अंत में दीक्षा धार ली (190-192)
- सांख्य दर्शन के गुरु–देखें सांख्य ।
पुराणकोष से
(1) रोहिणी के स्वयंवर में सम्मिलित वेदसामपुर का राजा । कृष्ण-जरासंध युद्ध में इस नृप ने कृष्ण की ओर से भाग लिया था । हरिवंशपुराण 24.26-27, 31. 30, 50. 82(2) धातकीखंड के भरत क्षेत्र का नारायण । यह एक समय चंपा नगरी के बाहर आये हुए मुनि की वंदना के लिए आया था । वहाँ इसने विष्णु के शंख की महाध्वनि सुनकर शंख बजाने वाले, कृष्ण से मिलने की मुनि से इच्छा प्रकट की थी । मुनि ने द से समझाया था कि तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलभद्र, नारायण और प्रतिनारायणों का परस्पर मिलन नहीं होता, केवल चिह्न मात्र से ही उनसे मिलन संभव है । इसके पश्चात् शंखध्वनि के माध्यम से ही इसने कृष्ण से भेंट की थी । हरिवंशपुराण 54.56-61, पांडवपुराण 22.5.13
(3) वसुदेव तथा कपिला का पुत्र । हरिवंशपुराण 24. 26-27, 48.58
(4) मरीचि का शिष्य । महापुराण 74.66 देखें मरीचि
(5) मगधदेश मे स्थित अचल ग्रामवासी धरणीजट ब्राह्मण की दासी का पुत्र । इसे पिता ने पर से निकाल दिया था, अत: यह रत्नपुर चला गया और वहाँ सत्यकि विप्र की कन्या सत्यभामा से इसका विवाह हुआ । इसके पश्चात् इस नगर से भी निकाल दिये जाने पर यह संसार में भ्रमण करता रहा । अंत में मरकर यह कौशिक ऋषि का मृगशृंग-नामक पुत्र हुआ । महापुराण 62.325-331, पांडवपुराण 4.194-203, 220-221
(6) अयोध्या निवासी एक ब्राह्मण । काली नामा ब्राह्मणी इसकी भार्या था । मरीचि का जीव ब्रह्म कल्प से स्तुत होकर जटिल नाम से इन्हीं का पुत्र हुआ था । महापुराण 74.68, वीरवर्द्धमान चरित्र 2.105-108
(7) वल्कलधारी तापस । पद्मपुराण - 4.126-127
(8) अरुणग्राम का निवासी एक क्रोधी ब्राह्मण । इसने वनवास के समय उसके यहाँ आये राम, लक्ष्मण और सीता को अपने घर से निकाल दिया था । इस पर लक्ष्मण को क्रोध आ गया और जैसे ही वह इसे दंड देने लगा राम ने उसे रोक दिया । तब इसने आत्मनिंदा की और अंत में यह दिगंबर साधु हो गया । पद्मपुराण - 35.7-8,पद्मपुराण - 35.13-15, 25-29, 97-102, 176-192