देवकीर्ति: Difference between revisions
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<li> द्रविड़ संघ की गुर्वावली के अनुसार आप अनन्तवीर्य के शिष्य व गुणकीर्ति के सहधर्मी थे। समय–ई.९९०-१०४० ( देखें - [[ इतिहास#7.8 | इतिहास / ७ / ८ ]]ख)। </li> | |||
<li> नन्दिसंघ के देशीयगण की गुर्वावली के अनुसार आप माघनन्दि कोल्लापुरीय के शिष्य तथा गण्ड, विमुक्त, वादि, चतुर्मुख आदि अनेक साधुओं व श्रावकों के गुरु थे। आपने कोल्लापुर की रूपनारायण वसदि के आधीन केल्लेगेरेय प्रतापपुर का पुनरुद्धार कराया था। तथा जिननाथपुर में एक दानशाला स्थापित की थी। इनके शिष्य हुल्लराज मन्त्री ने इनके पश्चात् इनकी निषद्या बनवायी थी। समय–वि.११९०-१२२० (ई.११३३-११६३); (ष.खं.२/प्र.४ H.L.Jain)– देखें - [[ इतिहास#7.5 | इतिहास / ७ / ५ ]]।</li> | |||
<li> नन्दिसंघ के देशीयगण की गुर्वावली के अनुसार (देखें - [[ इतिहास | इतिहास ]]) आप गण्डविमुक्तदेव के शिष्य थे। समय–शक १०८५ में समाधि (ई.११३५-११६३); (ष.खं.२/प्र.४ H.L.Jain)– देखें - [[ इतिहास#7.5 | इतिहास / ७ / ५ ]]। </li> | |||
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Revision as of 16:15, 25 December 2013
- द्रविड़ संघ की गुर्वावली के अनुसार आप अनन्तवीर्य के शिष्य व गुणकीर्ति के सहधर्मी थे। समय–ई.९९०-१०४० ( देखें - इतिहास / ७ / ८ ख)।
- नन्दिसंघ के देशीयगण की गुर्वावली के अनुसार आप माघनन्दि कोल्लापुरीय के शिष्य तथा गण्ड, विमुक्त, वादि, चतुर्मुख आदि अनेक साधुओं व श्रावकों के गुरु थे। आपने कोल्लापुर की रूपनारायण वसदि के आधीन केल्लेगेरेय प्रतापपुर का पुनरुद्धार कराया था। तथा जिननाथपुर में एक दानशाला स्थापित की थी। इनके शिष्य हुल्लराज मन्त्री ने इनके पश्चात् इनकी निषद्या बनवायी थी। समय–वि.११९०-१२२० (ई.११३३-११६३); (ष.खं.२/प्र.४ H.L.Jain)– देखें - इतिहास / ७ / ५ ।
- नन्दिसंघ के देशीयगण की गुर्वावली के अनुसार (देखें - इतिहास ) आप गण्डविमुक्तदेव के शिष्य थे। समय–शक १०८५ में समाधि (ई.११३५-११६३); (ष.खं.२/प्र.४ H.L.Jain)– देखें - इतिहास / ७ / ५ ।