कुरुविंदा: Difference between revisions
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<span class="HindiText"> कौशांबी नगरी के वणिक् बृहदघन की भार्या और अहिदेव तथा महीदेव की जननी । इसके दोनों पुत्रों ने अपनी संपदा बेचकर एक रत्न खरीद लिया था । यह रत्न दोनों भाइयों में जिसके पास रहता वह दूसरे को मारने की इच्छा करने लगता था, अत, दोनों भाई उस रत्न को अपनी माता कुरुविंदा को दे आये । इसके भी भाव विष देकर दोनों पुत्रों को मारने के हुए परंतु ज्ञान को प्राप्त हो जाने से इसने वह रत्न यमुना में फेंक दिया । एक मच्छ यह रत्न खा गया । धीवर उस मच्छ को पकड़कर इसके ही घर बेच गया । इसकी पुत्री ने मच्छ काटते समय वह रत्न देखा । पुत्री के भाव भी अपने दोनों भाइयों तथा माँ को मारने के हुए । इसके पश्चात् परस्पर एक दूसरे का अभिप्राय जानकर उन्होंने उस रत्न को चूर-चूर कर फेंक दिया । वे चारों विरक्त होकर दीक्षित हो गये ।</span> <span class="GRef"> पद्मपुराण 55.60-67 </span> | <span class="HindiText"> कौशांबी नगरी के वणिक् बृहदघन की भार्या और अहिदेव तथा महीदेव की जननी । इसके दोनों पुत्रों ने अपनी संपदा बेचकर एक रत्न खरीद लिया था । यह रत्न दोनों भाइयों में जिसके पास रहता वह दूसरे को मारने की इच्छा करने लगता था, अत, दोनों भाई उस रत्न को अपनी माता कुरुविंदा को दे आये । इसके भी भाव विष देकर दोनों पुत्रों को मारने के हुए परंतु ज्ञान को प्राप्त हो जाने से इसने वह रत्न यमुना में फेंक दिया । एक मच्छ यह रत्न खा गया । धीवर उस मच्छ को पकड़कर इसके ही घर बेच गया । इसकी पुत्री ने मच्छ काटते समय वह रत्न देखा । पुत्री के भाव भी अपने दोनों भाइयों तथा माँ को मारने के हुए । इसके पश्चात् परस्पर एक दूसरे का अभिप्राय जानकर उन्होंने उस रत्न को चूर-चूर कर फेंक दिया । वे चारों विरक्त होकर दीक्षित हो गये ।</span> <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_55#60|पद्मपुराण - 55.60-67]] </span> | ||
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Latest revision as of 22:20, 17 November 2023
कौशांबी नगरी के वणिक् बृहदघन की भार्या और अहिदेव तथा महीदेव की जननी । इसके दोनों पुत्रों ने अपनी संपदा बेचकर एक रत्न खरीद लिया था । यह रत्न दोनों भाइयों में जिसके पास रहता वह दूसरे को मारने की इच्छा करने लगता था, अत, दोनों भाई उस रत्न को अपनी माता कुरुविंदा को दे आये । इसके भी भाव विष देकर दोनों पुत्रों को मारने के हुए परंतु ज्ञान को प्राप्त हो जाने से इसने वह रत्न यमुना में फेंक दिया । एक मच्छ यह रत्न खा गया । धीवर उस मच्छ को पकड़कर इसके ही घर बेच गया । इसकी पुत्री ने मच्छ काटते समय वह रत्न देखा । पुत्री के भाव भी अपने दोनों भाइयों तथा माँ को मारने के हुए । इसके पश्चात् परस्पर एक दूसरे का अभिप्राय जानकर उन्होंने उस रत्न को चूर-चूर कर फेंक दिया । वे चारों विरक्त होकर दीक्षित हो गये । पद्मपुराण - 55.60-67